ना सर फूटा न ठीक से धुंवा उठा
न कोई तेज आवाज , न सनसनी !!
कल वो मर गया , कोई रोया तक नहीं ?
मन में विकारों का जखीरा लिए
कब तक उस पर गुस्सा उतारेंगे
कब अपनी ओर भी निहारेंगे ?
अपने चेहरों से नकली आवरण उतारेंगे !!
कल कोई कह गया
सभी में उसे रावन दिखता हैं।
मैं विस्मित था , बोला वहीँ बिकता है ।
वही रोज जिन्दा होता है
हमारे मन में
फिर हमारे बोल में , फिर तन में
अपना भला अगर चाहते हैं
तो मारे उसे पैदा होते ही
सबसे पहले मन में ।
तब जरुरत ही न आन पड़े
मारने की उसे तन में
और फिर उर्जा लगे राम जैसे
व्यक्तित्व के गठन में ।।