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बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

सबमें रावण क्यूँ दिखता हैं ... !!


मुआ ठीक से जला भी नहीं ?
ना सर फूटा न ठीक से धुंवा उठा  
न कोई तेज आवाज , न सनसनी !!
कल वो मर गया , कोई रोया तक नहीं ?

मन में विकारों का जखीरा लिए 
कब तक उस पर गुस्सा उतारेंगे 
कब अपनी ओर भी निहारेंगे ?
अपने चेहरों से नकली आवरण उतारेंगे  !!
 
कल कोई कह गया 
सभी में उसे रावन दिखता हैं।
मैं विस्मित था , बोला वहीँ बिकता है । 
वही रोज जिन्दा होता है
हमारे मन में 
फिर हमारे बोल में , फिर तन में 
अपना भला अगर चाहते हैं 
तो मारे उसे पैदा होते ही 
सबसे पहले मन में ।
तब जरुरत ही न आन पड़े 
मारने की उसे तन में
और फिर उर्जा लगे राम जैसे 
व्यक्तित्व के गठन में ।।