सोमवार, 9 अप्रैल 2012

गुजरे ज़माने का चलन ...


गुजरे ज़माने का चलन ...  





           1973 की सुपर हिट फिल्म " दाग " का यह गीत आज भी जब सुनाई देता हैं,   तो अपना प्रभाव डाले बिना नहीं रहता / यह उस दौर का गीत हैं जब शर्मीला टैगोर और राजेश खन्ना की जोड़ी तब के दौर में एक के बाद एक सुपर हिट फ़िल्में दिए जा रही थी /  भारतीय फिल्मों का सुनहरा इतिहास आकार ले रहा था ... आज जितनी भी फिल्में हमारे यहाँ दौड़ पा  रही हैं उसकी सारी उर्जा का संचयन उन्ही दिनों में हुआ था ... नायक-नायिकाओं , निर्माता-निर्देशकों , गायक-संगीतकारों, पटकथा - संवाद - कहानीकारों, नगमानिगारों यहाँ तक की फिल्मों के चाहने वालों का भी मानो इस धरा पर एक स्वर्ण युग था /  उन दिनों एक के बाद एक मुंबई की सरजमीं पर सितारों का जमघट सा लग गया था / श्वेत-श्याम फिल्मों का युग उन दिनों मानों अभी-अभी आये फिल्मों के रंगीन युग का भरपूर लुत्फ़ उठा रहा था ...  आज भी प्रतिभा तो बहुत हैं पर सामंजस्य नहीं ... सब बिखरा-बिखरा सा जान पड़ता हैं /

                   
                   ये तो बात गुजरे ज़माने के चलन की थी ...  पर देखियें ना आज भी ऐसा ही तो होता जा रहा हैं ... दूसरों के दिल पे क्या गुजरेगी इस बात पर अब कहाँ कोई सोचता हैं ... आजकल मुहब्बत भी एक व्यापार के सिवा क्या रह गयी हैं .... एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग ... सोचों ऐसा कब नहीं हुआ ... कडवी सच्चाई हैं ... हकीकत के बेहद करीब ... एक नकली दुनिया बसा ही लेते हैं लोग /



                                   लता जी की आवाज इस गीत में अपना पुरजोर असर दिखाती हुई आसमान की बुलंदियों से सीधे कानों पर उतरती सी जान पड़ती हैं ... शर्मीला जी का सरल-सधा अभिनय गीत में जान फूंकता जाता हैं ... नगमानिगार साहिर साहब इस गीत की एक-एक लाइन एक-एक शब्द को इस तरह से पिरोते जाते हैं कि... वो जमाना अब कहाँ जो अह-ले  दिल को रास था ... तक आते आते सारी पीड़ा को सुखद अंत तक ले जाने की भरसक कोशिशों के बाद दिल को धडकता हुआ बस हौले से छोड़ देते हैं / जरूर सुने गुजरे ज़माने का यह गीत .... शायद कहीं किसी मोड़ से आती कोई आवाज आपको भी सुनाई दे जाएँ ... आपकी प्रतिक्रिया आपकी मुस्कराहट से ... आपकी यादों के झरोखों से होती हुई साफ दिखाई पड़ रही हैं .... चाहत सर्द न पड़ जाये ... हार जाएँ न लगन ....  फिर मिलेंगे ... शुभ रात्रि  /