सोमवार, 7 मार्च 2016

" माँ रोती है जब उसके लाल झगड़ते हैं "

                   म सभी ने माँ देखी हैं , माँ क्या करती है अपनी सन्तानों पर ममता उड़ेलती हैं , करुणा बरसाती है जो एक अमूल्य खाद होता है जिसके सहारे हम बढ़े होते हैं । और क्या करती है माँ ? वह देखती है की किसी कारण उसकी कोई सन्तान कमजोर है तो उसके लिए सबके भाग से बंटने वाली मिठाई में एक टुकड़ा अतिरिक्त रखती है उसे चुपचाप अलग से देती है । उस कमजोर पर एहसान करने के लिए नही बस उसे अधिक अपनापन मिले बस इसलिए । और उस माँ का दुर्भाग्य होता है जब उसकी सन्ताने उसी अतिरिक्त प्रेम के लिए आपस में झगड़ने लगे ।

एक कुशल माली को देखा होगा वो नन्हे बिरुओं को अधिक खाद , पानी और देखभाल देता है बनिश्ब्त बड़े पेड़ों के ।

                 सबको अपने भाग से जितना उसने बोया होता है उतना ही और वैसा ही मिलता हैं , ये शास्वत नियम है । सनातन रीत हैं । इसे सब मानते हैं । फिर हम किसी को अतिरिक्त क्या दे सकते हैं ? हम किसी को और कुछ नही दे सकते हैं सिवा सद्भवना के , करुणा मयी प्रेम के । इसके अलावा और सब तो उसके भाग का उसे कुदरत खुद ही दे देती है ।

                 अतः आओ देश को माँ समझते है तो आपस में सम्प्रदाय, जाति पाती , उंच नीच के संकीर्ण भेदों से ऊपर उठें , सब पर एहसान करने के लिए नही अपने आप पर एहसान करने के लिए । क्योंकि संकीर्णता आपके अपने विकास में बड़ी बाधा है ये आप समझते नही ।

               हो सके तो भगवान राम के जीवन से प्रेरणा लें की वे छोटे मोटे नही एक राज के अनीति पूर्ण बंटवारे पर भी आपस में झगड़े नही और ना ही अपनी माँ को रंच मात्र कोसा । नही तो पूरी प्रजा उनके साथ थी कर देते बगावत ।

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