गुरुवार, 7 जनवरी 2016

निच्छल प्रेम की छोटी सी भेंट ...



           
            आगाख़ान महल की नज़र बंदी के दौरान म. गांधी का स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था। उसी नज़र बंदी के दौरान कस्तूरबा और फिर महादेव भाई देसाई उनके निजी सचिव का भी निधन हो चूका था । अतः ब्रिटिश सरकार ने उनकी रिहाई का तय किया , ताके उनकी अगर मृत्यु हो जाय तो तोहमत ब्रिटिश सरकार के सर ना आये। 

                आगाख़ान महल की नज़र बंदी से रिहाई के बाद भी म. गांधीजी का स्वास्थ्य बहत खराब रहने लगा उन्हें थोड़े एकांत की और समुचित आराम की जरुरत थी। अतः गांधीजी को जुहू मुंबई ले जाना तय हुआ। पर वहां भी उनसे मिलने आने वालों का ताँता लगा रहता था। फिर भी श्रीमती सरोजनी नायडू उनसे मिलने वालों की संख्या को बहुत कुछ नियंत्रित करती थी जिससे उनको ज्यादे से जयादे आराम नसीब हों। 

              उनसे वहां मिलने वालों में दस बारह साल का मैले कपडे पहने एक बालक भी आया। उस बालक की मुलाकात ने तो बापू का दिल ही जीत लिया था। वह बालक बापू से मिलने की सुबह से ही जिद कर रहा था। किस तरह उसका न. शाम को आया। बापू से जब वह मिला तो उसने अपने कमीज की जेब से निकाल कर बापू के चरणों में कुछ फल रख दिए। तब गांधीजी की मंडली जो उस समय वहां उपस्थित थी में से किसी ने उस बालक को ऐसा ही कुछ कह दिया जिससे उस बालक के स्वाभिमान को चोट पहुंची और वह बालक कह उठा - नहीं , महात्मा जी , मैं भिखारी नहीं हूँ। जब से मैंने आपकी रिहाई का समाचार सुना तब से मैं कुली का काम करके कुछ दो - तीन रूपये जमा करके आपके लिए ये नम्र भेंट लाया हूँ । गांधीजी उसका निष्काम प्रेम देखकर द्रवित हो गए , बापू की आँखों से आश्रु धारा बह निकली । उन्होने कहा " बेटा अपने परिश्रम के फल तुम ही खाओ " परन्तु उस दृढ़ निश्चयी बालक ने उन्हें छुआ भी नहीं और कहा - महात्मा जी आप ये फल खा लेंगे तो मेरा पेट भर जायेगा। " यह कहते हुए उस बालक का चेहरा विजय गर्व से दमक उठा और फिर वो आहिस्ता से बापू को प्रणाम कहते हुए उनकी तरफ बिना पीठ किये धीरे - धीरे चला गया। 

               मित्रों, बापू ने भारत भूमि को और यहाँ रहने वाले एक - एक प्राणी के प्रति अगाध प्रेम किया था , और बदले में उन्हें भी भारत भूमि से , यहाँ रहने वालें एक - एक इंसान से वैसा ही स्नेह और आदर मिला था। 

             आओ गर्व करें की हमें म. गांधीजी जैसे राष्ट्रपिता का साथ मिला और मिली उनकी मंगल कामनाएं, मिली उनकी मैत्री , मिला उनका मार्गदर्शन।

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