रविवार, 15 नवंबर 2015

गांधी की शक्ति

म. गांधी ने कभी तीन चार दल नही बनाये । माने अलग अलग नामों से । जिसमें कुछ हिंसा को अपनाते, और कुछ अ हिंसा का स्वांग रचते । कुछ लोगों को जाती धर्म के आधार पर बांटते और कुछ एकता का राग अलापते ।

उन्होंने बस अपना एक ही रस्ता चुना और भी सविनय अवज्ञा और सम्यक अहिंसा के साथ ।

इसी कारण उनकी शक्ति बंटी नही एक रही । वरना क्या होता उनका कोई एक दल लोगों को बांटता और एक जोड़ने का दिखावा करता तो फिर गांधी कैसे सफल होते और देश दुनिया में जाने जाते ।

दोस्तों बापू बड़े सजग रहते थे । दोगलेपन और उसे अपनाने वाले अपने साथियों पर कड़ी नज़र रखते थे । हम अगर ध्यान से देखें तो उन्होने अपने कई साथियों को लाख अच्छे होने के बावजूद भी जब देखा की उनका झुकाव भेदभाव की तरफ है या हिंसा की वकालत करते है को देर नही की अपने से दूर कर दिया ।

तो दोस्तों , इसी आधार पर गांधी की जन स्वीकार्यता बढ़ी और सम्पूर्ण विश्व में अपने आप फैली। लोगों का विश्वास उन पर बड़ा । अतः जो भी हमारे विचार हों उन पर कैसे दृढ़ रहना ये हमें बापू से सीखना चाहिए और नकलीपन और दोगलेपन से बचना चाहिए । चाहे हम छोटा काम कर रहे हों या बड़ा इससे कोई फर्क नही पड़ता । फर्क पड़ता हैं विश्वनीयता से । यही कारण है की आज भी हमारी विश्वसनीयता पर कोई ऊँगली उठाये तो बिना देरी हम गांधी और बुद्ध का भरोसा सबको देते हैं । और दुनिया हमारा मान रखती हैं ।

आज के हालातों में हम देखें तो पाएंगे दोगले लोग बहुत देर तक सफलता के शिखर पर नही रह पाते क्योंकि उनका दोगलापन और नकलीपन उन्हें शिखर से नीचे खिंच लाता हैं ।

बापू तुम फिर आना मेरे देश ।

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