जन जन की बात ...
धर्म की रक्षा उसके पालने वाले एक एक जन के अंदर हो और हर जन अंदर अंदर से खूब धार्मिक हो तो फिर धर्म की बाहरी बाहरी रक्षा की जरा भी जरूरत नही । धर्म फिर खूब बलवान होता हैं ।
अन्यथा धर्म को मानने वाले भीतर से धार्मिक ना हो और धर्म के बाहरी आवरणों, दिखावों को महत्व दें और उनकी रक्षा को ही धर्म की रक्षा मानने की भूल करें तो फिर धर्म बलहीन होकर ना अपनी रक्षा कर पाता है ना अपने रक्षक की ।
मित्रों , दूसरे कारण तो नगण्य हैं भारत से बौद्ध धर्म संस्कॄति के समूल विलोपन के पीछे यही कारण बड़ा था ।
आओ धर्म की रक्षा के महत्व को समझे और सच्चे धार्मिक बनें । दिखावटी सांप्रदायिक नहीं !
अपने भी भले के लिए और औरों के भी कल्याण के लिए ।