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बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

वक्त तो लगता हैं !!




       देश आजाद हुआ … तब हम भारतीय ३२ -३५ करोड़ के आसपास थे , रोजगार, खाद्यान्न और सांप्रदायिक झगड़े टंटो की विकराल समस्या थी … पर भला हुआ इस पावन धरा पर मजबूत लोकतंत्र की गहरी नींव लम्बे आज़ादी के संघर्ष के दौरान पड़ चुकी थी … सांप्रदायिक झगड़ों और उनसे हुए अतुलनीय नुकसान से सांप्रदायिक सद्भाव का महत्त्व भली तरह उजागर हो चूका था … हिंदुस्तान ठोकरें खाकर अब ठाकुर " भारत " के नए अवतार में था … जिसके प्राण बना हमारा अतुलनीय खूबियों वाला संविधान !!

                  शुरूआती बीस- तीस साल तक भारत बड़े उद्योगों के सृजन में, और कृषि के विकास के कामों में भारत तल्लीन रहा … ताके उत्पादन के क्षेत्र में , रोजगार के क्षेत्र में और खद्यान्न के मामलों में हम आत्म - निर्भर हो सके , और इतिहास को हम देखें तो हमें विश्व का सहयोग भी मिला और हम सफल भी हुए ही। 

                    परन्तु अब भी पूंजीपति और बिचौलियों द्वारा आम जनता के परिश्रम का शोषण जारी था … और शुरुआत में जब हम संभल रहे थे शोषण पर एकदम से नियंत्रण स्थितियों के बिघड़ने का कारण बन सकता था … और देश समता और बराबरी के लिए खामोश लढाई लढता रहा । 

                    जब हम थोड़े संभले तो बारी आई सपनों के उडान भरने की और सबसे पहले हमें आकर्षित किया " कार " ने, फिर कार आई … इसके बाद धीरे-धीरे प्रगति करता भारत " अमर घर चल से निकल कर " कम्यूटर की दुनिया में प्रवेश कर गया … फिर दौर शुरू हुआ आर्थिक सुधारों का … यही से भारत ने उडान भरी महत्वाकांक्षी और बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के सम्यक और कल्याणकारी मंसूबों की दिशा में , जहाँ शोषित को उसके हक प्राकृतिक रूप से मिले ऐसी कोशिशें शुरू हुई … संचार के क्षेत्र में, आवास और संरचनात्मक ढांचे की बनावट के तेज काम इस महत्त्व के काम को उल्लेखनीय गति देते गए। 
                 बहुतेरे काम अभी भी होने हैं … लेकिन उचित अवसर जान सामाजिक आर्थिक प्रगति और शोषितों को उनके श्रम का उचित मुल्याङ्कन हो और शोषितों को उनके वाजिब हक मिले इस दिशा में मनरेगा, खाद्य सुरक्षा, शिक्षा का अधिकार , चिकित्सा की सुलभता और, भूमि सुधार के उपाय और इन सबकी सफलता सुनिश्चित करने वाला " आधार " … उज्जवल भविष्य की वह गाथा लिखेगा कुछ दशकों में धुल से किस तरह कोई सुगन्धित फुल खिल उठता हैं यह दुनिया देखेगी  ...  हम कोरे विकास के कागज के असंवेदन शील और असुगंधित फुल बन कर ही ना रह जाएँ   … हमारे दिलों से दिल मिले।  

                पर भारत के पुनः अभ्युदय का विशेष प्रयोजन अभी कुछ साल और लगे पर यह होगा ही कि हम भारतीय उन ऊँचाइयों को छुए जिनके कारण भारत कभी " सोने की चिड़िया कहलाया " था। 

                वक्त तो लगता हैं … हालिया फोर लेन सड़कें जब हमें इठलाये … हम भारत के विकास की कहानी में पगडंडियों , कच्ची सड़कों और बैलगाड़ियों के योगदान को सिरे से ना नकारें … हम हमारे देश के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े प्रयत्न को याद रखे … यादें हौसले देती हैं। 

                  नए परिंदे को उड़ने में वक्त तो लगता हैं … पर … वह उड़ेगा और उन्मुक्त आकाश हमारा ही हैं … और भारत विश्व कल्याण के भार से भारित भी है ही।