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बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

जब दुश्मन प्यारा लगे …


                गुस्सा और नफरत सहज खरपरवार - सी बिना विशेष प्रयास के हमारे दिलों में उग जाती हैं … या ऊगा दी जाती हैं … अब वह नफरत जायज हो या नाजायज नुकसान तो हमारा ही करती हैं … नफरत के कारण को मिटाने से आज तक दुनिया में कभी नफरत का नाश नहीं हुआ … 

              वस्तुतः नफरत के कारण को नहीं उसके फैलाव को रोकना होता हैं … और उसका फैलाव कोई रोके तो भला कहाँ रोके … फैलाव हमारे दिलों में होता हैं … उसे वहीँ रोके … हमारे अपने भले के लिए … और साथ ही साथ सबके भले के लिए। 

               कल सुना कोई अपने मित्रों की किसी गलती पर उनके प्रति नफरत में कई - कई साल जलता रहा … पर उसका भला अंततः हुआ अपनी नफरत पर विजय पाकर …. यह बड़ी बात हैं। 

                म. गाँधी पर छः बार हमले हुए … पांच बार उन्हौने अपने ऊपर हुए हमलों को नज़रअंदाज किया … और छटी बार अपने प्राणों की आहुति देकर सद्भाव और सौजन्यता की मिशाल कायम कर गए … वे अपने से नफरत करने वालों से नफरत करके पहली बार में ही मार दिए गए होते … यही कारण रहा की वे मरकर भी अजेय हैं।

                           हो सके तो बाकि सब करें नफरत किसी से ना करें ... सुने यह गीत भी कुछ यही कहता हैं --