
वर्ना नहीं ... कभी नहीं !!!
आज हमारे सामने म. गाँधी जी उदाहरण स्वरूप है ही ... ऊपर ऊपर से हमें यह लगता हैं और सत्य भी हैं कि उन्हौने अंग्रेजों से लढाई लढी ... वस्तुतः आजीवन वे अपने आप से लढते रहे ... और आत्मसुधार की प्रक्रियां में वे कहीं आगे ... कहीं आगे रहे ... वस्तुतः दुनियां को उन्हौने इसी रस्ते झुकाया ... सबका ध्यान उनपर इसी कारण गया ...
संलग्न चित्र में उनका इशारा भी इसी ओर हैं ....
अगर हम एक - एक भारतीय आत्मसुधार इस प्रक्रिया में संलग्न हो जाएँ ... तो फिर रामराज्य दूर की कौड़ी नहीं रहे ...
(हम कतई निराश ना हो ... सभी सम्प्रदायों में , सभी समाजों में , सभी जातियों में , सभी दलों में , हर जगह ... कम या ज्यादा इस तरह के लोगों की मौजूदगी है ही ... और यह क्रिया सतत जारी हैं )
सबका भला हो !!