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खैर ... कड़े कदम जो - जो जरुरी हैं वे- वे उठ ही रहे होंगे ... फिलहाल .... और नए कड़े कदम कोई सुझाये तब तक यह मानना हितकारी हैं ... और लाज़मी भी .. पर एक बात और ... कड़े कदम उठाकर सड़क पर ही सही सचमुच हम भी अगर चलना चाहे ... और हमेशा के लिए उन्हें अपनी सामान्य चाल का अंग बना ले ... तो मैं नहीं मानता हम अधिक दुरी तक चल पाएंगे ...
हमें कड़े नहीं "सधे" हुए कदमों की दरकार हैं ..सधे हुए कदम यानि हमारी कथनी और करनी का एक समान होना .... हमारा सबका और भारत देश का सुमंगल केवल इसी बात में निहित हैं की हम टेड़े -मेढ़े और केवल कड़क नहीं .... वरन ... "सधे " हुए कदम चलने लगे ...यही भारत की तासीर हैं ... उसके अभ्युदय में निहित किसी बड़े शुभ -मंगल का कारण हैं ... गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर की सहज सरल वाणी हमारा मार्गदर्शन कितनी खूबसूरती से करती हैं ... " जन- गण -मन मंगल दायक जय हे "