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सोमवार, 22 अप्रैल 2013

आओ दुआ करें ...


   ... जब शुभकामनाओं की उमंग और तरंग ( दुआएं ) दिलों से झूम कर उठती है ... तो फिर चाहे ... कहीं उठ रही हो ... वे उमंगें और तरंगे दुनिया - जहान में उस उस तरह की तरंगो और उमंगो से समरस हो ही जाती हैं ... 

                  आखिर जिन्दगी है क्या ? ... बस एहसासों की लम्बी अनवरत श्रंखला ही तो हैं ... सभी ने यह महसूस किया ही होगा ... कभी मन यूँ ही प्रफुल्लित रहता हैं ... और कभी यूँ लगता है जैसे बेवजा उदास हैं ... यह सब यूँ ही नहीं होता ... उमंग या उदासी की तरंगो से उस उस समय हमारे मनों का समरस हो जाना ही तो हैं ... 

      सुनकर देखे यह गीत ... यह गीत ... गजब की काबिलियत रखता हैं ... एक नहीं कई बार यह कुदरती जादूगरी से हमें और हमारे मन को अनायास छू जाता हैं ... हौले हौले ... आहिस्ता अहिस्ता ... दुआएं / मंगलकामनाएं बेरोकटोक मीलों का सफ़र पल में यूँ तय करती है जैसे सूरज की किरण ... या हवाएं .... बस यहाँ से वहां तक "चाहो " के सायें ही तो हैं ... पल - पल उजाले और पल-पल अँधेरे हमारी महसूस करने की क्षमता की अग्नि परीक्षाएं ही तो हैं ... 


                    1973 की फिल्म " प्रेम पर्वत " का यह गीत लता जी की आवाज में सुमधुर झरनों की ताजगी सा कितनी सुलभ आज़ादी से जयदेव साहब की संगीत रचना में  जाँ -निसार-अख्तर साहब की भली सोच को  इतना कर्णप्रिय बना देता हैं की पूरा गीत ख़त्म होने को आता ... पर मन वहीँ कहीं खोया सा ... धीरे - धीरे अल्हड़ सा यादों की पगडंडियों पर रुके रुके कदमों से चलता हुआ ... दो कदम आगे .. चार कदम पीछे बस सरकता हैं ... और दिल बस सबके भले की दुवाएं ही करता है ... 

आओ दुआ करें ... सबका मंगल हो !!!