गुरुवार, 13 सितंबर 2012

अमर घर चल ... !!

घर ... !!






             अमर घर चल ...  इधर उधर मत चल ... नल पर चल .... यूँ धीरे धीरे हिंदी भाषा कब हौले से हर भारतवासी  के दिलों में उतर गयी पता ही नहीं चला ... जैसी हमारी गंगा जमुनी संस्कृति ठीक वैसी ही हमारी राष्ट्र  भाषा हिंदी कई भाषाओँ का मेल ... प्रारंभ में 9 और 10 वीं शताब्दी में उत्तर भारत में और दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में बोली जाती थी.... वस्तुतः हिंदी का विकास पारसी , फारसी , उर्दू और संस्कृत के शब्दों  का बेमिसाल संगम हैं ... कभी  अलग न किया जा सकने वाला स्वभाविक मिश्रण हैं .. जिसे समय ने तैयार किया हैं ... और लोगों के बीच पली बड़ी हैं ... 

           हिंदी के पनपने में किसी सम्प्रदाय विशेष का कोई हाथ नहीं  ... इसीलिए यह सबको अपनी सी लगती हैं  …  सबकी हैं , सबको इसे अपनाने में हिचक नहीं होती हैं  ...  यह सबकी हैं .. यह अपने बलबूते पर विश्व की सम्रुद्ध भाषाओँ से मुकाबला करती हैं ... इसका विरोध भी होता रहता है ... पर इसका अस्तित्व बार बार फिर अधिक सुदृढ़ होकर उभर आता है ... वस्तुतः इसके देखभाल की कोई विशेष गरज नहीं ... उलटे यही हमारे देश की आवाज को जोड़ने का ... उसकी की अहमियत को उभारने का काम बखूबी बड़ी ख़ामोशी से करती रहती हैं ...

           जब महात्मा गाँधी के समक्ष हमारे देश की राष्ट्र भाषा क्या हो ?    यह प्रश्न पेश आया तो उनका  सहज उनका इशारा हिंदी की ओर ही गया ... गांधीजी को हिंदी भाषा से अप्रतिम प्रेम और भरोसा था /

          और आज हिंदी पर उनका भरोसा खरा साबित हो रहा है ... हिंदी के विकास  से किसी भाषा को कोई खतरा नहीं ... वरन हिंदी हर प्रान्त में हर जगह जाकर उन उन प्रान्त की भाषाओँ से मिलजुल कर और निखरती ही जा रही हैं ... संवरती ही  जा रही हैं ...

हिंदी तुझे सलाम !!!