शनिवार, 22 सितंबर 2012

डर के आगे दादा भागे ...

डर के आगे दादा भागे ... 




       पेड़ को काटना छोडो  ...  थक गए होंगे ... थोडा आराम करो ... कल फिर नए सुधार कार्यक्रम की घोषणा होने वाली हैं ...थोड़ी उर्जा बचा कर रखो .. नहीं तो कल देर तक सोते ही रहोगे ...फिर क्या खाक विरोध कर पाओगे ?

               कल जब से PM साहब ने अपनी बात में की " पेड़ पर पैसे नहीं लगा करते " यह क्या कह दिया ... विरोधियों को नया अजूबा मिल गया ...  

              हर विरोध करना वाला बस  पेड़ उखाड़ उखाड़ कर देख रहा हैं ... और यह मानने को तैयार ही नहीं की ... देश को आर्थिक दुरावस्था से बचाने के लिए अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए ... थोड़े से कड़े आर्थिक कदम उठाना लाजमी हैं ... अगर पैसों का पेड़ होता तो NDA राज में पैसे तोड़ नहीं लिए होते ... काहे सोना गिरवी रखते विदेशवा में ?

                 चलो थक गए होंगे ... सो थोड़ी देर इस कहानी को पढो ... ताजगी आ जाये शायद ... फिर लग जाना पेड़ उखाड़ने में ... अब आपको रोको तो कहते हो विरोध भी नहीं करने देते ... 

                   एक बांवरा लड़का था ... उसे जब तब कोई न कोई सनक सवार हो जाती थी ... माता - पिता परेशान थे ... बहुत समझाते थे पर जब जब भी कोई सनक सवार होती सारा घर सर पर उठाकर बहुत कोहराम मचाता था /  यूँ ही धीरे धीरे दिन गुजर रहे थे ... एक दिन उस सनकी बालक ने यह कह कर चीखना चिल्लाना शुरु कर दिया की ... मैं घर से बाहर नहीं निकलूंगा ... घर के बाहर घूम रहा मुर्गा मुझे चना समझ चुग जायेगा ... और लगा डर के मारे रोने धोने और चीखने चिल्लाने / 

                     तभी कुछ शुभ संजोग जागा ...और उस घर में एक समझदार बुजुर्ग दादाजी का आना हुआ ... उनके आगमन मात्र से घर में जैसे नयी उर्जा का संचार होगया ... दादाजी ने भी उस बालक का रोना सुन कारण जानना चाहा ... पिता ने उन्हें घर के दुसरे कमरे में ले जाकर विस्तार से सब माजरा कह सुनाया ... और लगे हाथों बड़ी आशा से इस समस्या पर कुछ करने की गुजारिश भी कर दी / दादाजी बड़े घाग थे .... उन्हौने जमाना  देखा था ... उन्हें यह समस्या बड़ी छोटी लगी ... वे हलके से मुस्कुराये और कहा .... " ले आओ उस बालक को मैं अभी समझाय देता हूँ .... उसे ... तुम समझे नहीं .... मैं खूब जानता हूँ इस तरह की प्रोब्लम से कैसे निपटा जाता हैं /

                       बालक  के आते ही दादाजी ने सभी को तुरंत कमरे बाहर जाने को कहकर ... दरवाजा भिड़का दिया ... अब वहाँ रह गए वह बालक और दादाजी ... दादाजी ने बालक को प्यार से गोद मैं बैठाया और बालक सर पर स्नेह से हाथ घुमाते हुए उसे समझना शुरु किया ... दादाजी प्रश्न -उत्तर की शैली में अपनी बात को कहने में बड़े माहिर थे ... पुराने घाग नेता जो ठहरे ../

                    उन्होंने बालक से कहा .... अच्छा बेटा यह बताओ ... तुम्हारे कितने हाथ हैं ? ... बालक तुरंत कह उठा .... दो हाथ हैं दादाजी /  दादाजी ने तुरनत दूसरा सवाल दागने में देर नहीं की ... और चने के कितने हाथ होते हैं ?  ... बालक फिर सहज भाव से कह गया  ... चने के , उसके हाथ थोड़े होते हैं /

                        इसी तरह दादाजी उस बालक और चने के बीच असमानता सिद्ध करने लिए ... एक के बाद एक सवाल दागे जा रहे थे / और बालक बराबर उत्तर देते हुए दादाजी की तरफ बड़े अजूबे ठंग  से लगातार टुकुर मुकुर निहार रहा था / दादाजी को जब ठीक से विश्वास हो गया की बालक अब चने को अपने से कहीं छोटा और निर्जीव और कमजोर मान चूका हैं ... दादाजी ने विजयी मुस्कान अपने अधरों पर बिखेरी और ... अब बालक की तरफ करुणा की बारिश सी करते हुए कहा ...  बेटा तुम नाहक डरते हो .... अरे जिस चने के न हाथ हैं ... न पांव ... न कान हैं और न ही मुख ... और तुम कितने बड़े हो और ताकतवर भी ... बताओ भला तुम्हे मुर्गा कैसे चना समझ कर खा पायेगा भला ..... बताओ जरा ? 

                   अब लड़के की बारी थी ... जिसका वह बड़ी व्यग्रता से बस अपनी बात कहने की बात  ही जोह रहा था  ... कब  दादा जी अपनी बक बक बंद  करें तो अपनी बात कहूँ इनसे ...अबके बच्चे ने बिना देर किये कहा ... दादाजी मेरी समझ  में सारी बात आ गयी हैं ... पर उस मुर्गे को कोई कैसे समझाए भला  ... /

                दादाजी ने सर पकड़ लिया ... और बालक फिर जोर जोर से रोने लगा ... मातापिता शोर सुन आये ... वे लगातार दादाजी को और दादाजी उनको बस देखे जा रहे थे ... और ये  क्या अब तो दादाजी भी डर  के मारे  कमरे से बाहार  निकलने में डर  रहे थे  ... उन्हौने भी आते समय एक  मुर्गा घर के ठीक बाहर  ही तो देखा था  ...  /

                    बाहर कोई यह गजल गुनगुनाता  हुआ निकल  रहा था ... उसकी आवाज उस शोर भरे वातावरण में भी बिलकुल साफ सुनाई पड़ रही थी ....

गुलशन की फ़कत फूलों से नहीं,  काँटों से भी जीनत होती हैं /
जीने के लिए इस दुनियां में गम की भी ज़रूरत होती हैं //