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गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

कमजोर की आवाज बनें ..

कमजोर वर्ग की आवाज उठाने वाले को ताकतवर और दबंग मुर्ख कहकर नज़रअंदाज करते दिखें तो समझो उसकी आवाज से दबंगों में बेचैनी हैं ।

और यही बैचेनी जल्द बौखलाहट में तब्दील होकर दबंगो की कमजोरियों को उजागर करती जाती हैं ।

मित्रों म. गांधी भी चंपारण में किसानों की आवाज बने थे । अंग्रेजों ने पहले पहल गांधी का मज़ाक बनाया फिर भी गांधी को सविनय आन्दोलनरत देखकर बौखलाए पर गांधी डटे रहे फिर अंततः किसानों की जीत हुई । इस तरह विनय , धैर्य , सच से लबरेज निरंतरता के आगे दबंग और गर्वीले तथा गांठ गठीले अंग्रेज पस्त पड़ते गए ।

कमजोर की आवाज बनना लोकतंत्र की राह में दुरूह पर करणीय कर्तव्य हैं ।

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