कश्मीर हमारे देश का मस्तक हैं ... और मस्तक किसी का हो शांत रहे , समता में रहे , ... यह हर, कहीं हर स्थिति में जरुरी हैं / पहाड़ों में जिंदगी मैदानों की बनिश्बत ज्यादा मुश्किल होती हैं ... मौसम भी वहाँ कब बेईमान हो जाएँ ... भरोसा नहीं होता !!
मन जब पानी की तरह सहज सरल होता है तो अपने आप को पात्र के अनुकूल ठाल लेता है और अपनी सरलता भी नहीं गवांता / रास्ते में अवरोध आता है तो कल-कल करता हुआ उसकी बगल से गुजर जाता है ... कोई अवरोध उसे काटता है , दो टुकडे करता है , तो काटकर भी अवरोध के आगे बढता हुआ फिर जुड़ जाता है और वैसे का वैसा हो जाता हैं / जब कोई अवरोध दीवार की तरह सामने आकर उसकी गति अवरुद्ध करता है तो धैर्य पूर्वक धीरे- धीरे ऊँचा उठता हुआ उस दीवार को लांघकर सहज भाव से आगे बढ जाता है / आज कल दूसरों के दोष दिखाने और घृणा को फ़ैलाने, बढाने का एक अजीब सा दौर चल पड़ा है ... इस उहापोह में जाने कब हमारा मन सरलता खोकर कट्टरता की राह चल पड़ता है...और अपनी ओर निहारने की साधारण दृष्टी को गँवा कर गांठ-गठीला बन जाता है ... इसे रोकना चाहिए यह हमारे प्राकृतिक विकास की राह में बड़ा रोड़ा साबित होगा /
मैंने पाया कि प्राकृतिक रूप से बेपहान खुबसूरत इस जमीन के लोग भी स्वभाविक रूप से बड़े खुबसूरत हैं ... बस अब मन कि खूबसूरती को देखना ही बच गया था ... पर वहाँ की प्राकृतिक खूबसूरती को देखने में मैं खो सा गया ... पर अंतर्मन बराबर कश्मीरी मानस को जानने में मशगुल था ... वह बिना नागा छोटी छोटी बातों संज्ञान लेता जा रहा था ... और मेरी बेखबरी टूटी जब वहाँ से विदा लेने कि घडी समीप आ गयी ... एक दुकान पर हम कुछ समान खरीदने गए ...सौदा कुछ जमा नहीं तो वहाँ से चलने को हुए ... मैंने पाया की दुकानदार जो हमें काफी समय दे चूका था और अब कोई खरीद नहीं करने पर वैसा ही शांत था जैसा पहले ...और अपना समान वापस जमा रहा था ... हम मुड़ने को ही थे कि वह बोल पड़ा ... सर आपको कश्मीर कैसा लगा ?
मैं अप्रत्याशित सवाल से चौक पड़ा ... पर अगले ही क्षण मेरे अंतर्मन ने मेरा साथ दिया और अपना सारा आकलन मेरे समाने रख दिया ... जिसे वो पिछले कुछ दिनों से अपने स्तर पर बराबर किये जा रहा था ...मैंने उससे कहा ... कुदरत ने कश्मीर को सम्पूर्ण बनाया हैं ... कहीं कोई कमी नहीं ... मेरा उत्तर सुन वह उसको विस्तार से समझाने की जिद सी करने लगा ... तो मैंने उसे कहा ... भाई कोई घर हो ... कोई गाँव हो या हो कोई देश ... वह कैसा भी हो उस घर में , गाँव में या देश में रहने वाले लोगों से वह घर , गाँव या देश जाना जाता हैं ...और आप सभी इस स्वर्ग में रहने के खूब लायक हो ... आप सहिष्णु हो ... संतोषी हो ... आगे बड़कर मदद करने के दुर्लभ गुण से भरपूर भी हो ... और हो तहजीब से बात करने वाले ... आप लोगो से बात करके सुकून मिलता हैं ... कश्मीर से ज्यादा मैंने आप लोगों को पसंद किया हैं /
वह दुकानदार अब भी बराबर मुस्कुराये जा रहा था ...और तभी हमारा ऑटो वाला बोल पड़ा ... चलिए जनाब आपको देर हो रही हैं !! ... हम एक दुसरे को अभिवादन कर आगे बड़ गए ... खुश रहो कश्मीर ...!! तुमसे स्वर्ग का दर्जा कोई नहीं छीन सकता /