मंगलवार, 26 जून 2012

ये कौन सा दयार हैं ?

ये कौन सा दयार हैं ... ?







        जिंदगी के सफ़र में हमेशा अपनी मर्जी कहाँ चलती हैं ! ... और ना ही हमेशा चलती हैं जिन्दगी की  गाड़ी समतल सड़क पर ... उबड़ -खाबड़ और पथरीली राहों से सामना होना जिंदगी का दस्तूर हैं ... कभी कभी जिंदगी की गाड़ी ऐसे मकामों से गुजरती हैं ... जहाँ पंहुच कर मन थोडा - सा ठहर कर फिर आगे बढना चाहता हैं ... उस मक़ाम की मिटटी की महक , उस जगह की संवेदनाएं फिर कई अनकही अनसोची तस्वीरों को बायोस्कोप की मानिंद आँखों के  सामने से गुजार देता हैं ... फिर उस जगह से , उस जगह की हवा से , वहां की खुशबु से , दिल में अजीब सी बैचैनी और अजीब सा सुकून एक साथ दस्तक देता हैं ... मन कुछ देर के लिए ही सही उस पल को जी भर कर जीना चाहता हैं .


                फिल्म " उमराव जान "और रेखाजी एक दुसरे का पर्याय हैं ... इस फिल्म में अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ अदाकारी से इस अदाकारा ने एक ऐसा मक़ाम बनाया हैं ... जहाँ जिंदगी की गाड़ी तो चल रही जान पड़ती हैं पर चक्के मानों थमे हुए से हैं ... दिमागी ख्यालों को अभिनय के द्वारा हकीकत की तरह पेश करना ...वक्त के एक अदने से हिस्से का एक एक पल ... हर अदा से  ..बड़ी लगन से ... हर झंकार से ... हर छाया से ... हर प्रकाश से ...फिल्म की एक-एक फ्रेम पर साफ नजर आता हैं ... कभी नहीं लगता हम कैमरे की नजर से देख रहे हैं ... बल्कि यूँ लगता हैं कि कैमरा वही दिखा रहा हैं ... जो हम बस देखना चाहते हैं .

                            मुज्जफ़र अली साहब का नायब निर्देशन , खैय्याम साहब की बेमिसाल मौसिकी,  सहरयार साहब का नगमा और आशाजी की खनकती आवाज़ ने इस गीत में खूब रंग भरे हैं ... कोई जल्दी - बाजी नहीं ... हर रंग बड़ी खूबसूरती से कुछ यूँ भरे हैं की ... हर रंग अपना नया रंग दिखा रहा हैं . 

ना वश ख़ुशी पे हैं जहाँ , ना गम पे इख्तेयार हैं .
ये क्या जगह हैं दोस्तों , ये कौन सा दयार हैं /

               तमाम उम्र का हिसाब तो जिन्दगी मांगती ही हैं ... और देते रहेंगे हिसाब आहिस्ता - आहिस्ता ... फ़िलहाल ये गीत सुने ... फिर मिलेंगे  !!!