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शुक्रवार, 1 जून 2012

थोडा सा नेक हूँ ..!



थोडा-सा नेक हूँ ...




                   थोडा-सा नेक हूँ ... थोडा बेईमान हूँ ... कितनी दुर्लभ सहजता ... इतनी सहजता से अपनी ओर निहारने के जाने कितने मौके हम गँवा देते है ... सहजता बड़ी तेजी से सफाई का काम करती हैं ... सहज और सरल इन्सान फिर कुटिल नहीं रह जाता ... कुटिलता फिर आसपास भी नहीं फटकती ... ऐसा इन्सान फिर फरिश्तों की निगेहबानी में रहता हैं ... फिर बहते पानी की मानिंद उसका रास्ता कुछ यूँ बनता जाता हैं की रुकने की ,  थकने की संभावनाएं क्षीण होकर रह जाती हैं / अगर कहीं रस्ते में रूकावट आयें भी तो कल-कल करता हुआ उसके बगल से निकल जाता हैं / कोई अवरोध उसे काटता हैं ,  दो टुकड़े करता हैं ,  तो कटकर भी अवरोध के आगे बढता हुआ फिर जुड़ जाता हैं ... और फिर वैसे का वैसा होकर बह निकलता हैं /  कोई अवरोध उसे दीवार बन रोके तो खामोश रहकर अपना स्तर उठाकर उस बाधा को बिना हानि पहुंचाए अद्भुत सहजता से फिर आगे बढ जाता हैं / कुटिलता कठोर हैं , सरलता मृदुता हैं  /  कुटिलता अभिमानता हैं, सरलता निरभिमानता / सहजता को किसी ताज की , न ही किसी राज की जरुरत पड़ती ... वो निपट अकेली ही काफी हैं /

 
                                 " मदर-इंडिया " फिल्म का यह गीत नौशाद साहब के सहज सुमधुर संगीत की सुर लहरियों के मंद-मंद झोंकों से बड़ी सफाई के साथ दिलों पर जमीं धुल को झाड़ता पोंछता हुआ ...  उसकी चमक को उजास की सतरंगी किरणों तले लाकर कब छोड़ देता हैं ... पता ही नहीं चलता / शकील बदायूनी जी की रचना बड़ी साफगोई से जीवन के इस पहलु को उजागर करती जाती हैं /
                             
                    गीत का फिल्मांकन भी ध्यान से देखें तो ...  बस गीत की धुन के साथ बहता हुआ-सा जान पड़ता हैं / सुनील दत्त साहब का दमदार और सहज अभिनय और गुमनाम सहकलाकार वत्सला कुमठेकर जी का डर की आहट पर भी विस्मयकारी सहजता के साथ हैरान कर देने वाली ख़ामोशी का मौलिक प्रगटीकरण अद्भुत हैं ...जो दृश्य की जान भी हैं /

                             रफ़ी साहब की सदाबहार आवाज़ इस गीत में कई और खूबियों के साथ हाज़िर हैं ... सुने सुनाएँ ... पर हाँ सहजता को जरूर अपनाएं ... फिर मिलेंगे !!