उस दिन शाम को घर लौटा तो बेटी बोली - पापा वो अपने घर में हैं … देखों उसे हम उठा कर भीतर ले आये …. श्रीमती दरवाजे पर कड़ी थोड़ी चिंतित दिखी
उस दिन जाने क्या हुआ पता नहीं … पर हमारे घर के उजाल-दान में बना कबूतर का घोसला और उसके दो नन्हे बच्चे नीचे फर्श पर गिर पड़े … उनमें एक तो थोड़ी देर तड़प कर चल बसा … पर दूजा मेरे आने तक संघर्ष कर रहा था।

फिर मैं उठा सोचा कोशिश करने में क्या जाता हैं …. पुराने मुलायम कपड़ों से किसी तरह मोड़ -माड कर गोल -वोल करके एक घोंसले नुमा बनाया और आहिस्ता से उस नन्हे बच्चे को उसी उजाल - दान में रखा और नीचे आ गया।
हमारे पुण्य में यह कबूतर का नन्हा बच्चा भी भागीदार हो … उसका भला हो !!