शुक्रवार, 17 जून 2011

हम सुधरेंगे युग सुधरेगा ...





              दूसरों को सुधारने के चक्कर में पहले हमें सुधरना पड़ेगा ... और हमें स्वयं अपने सुधार की कोशिश करना पड़ेगी ....ऐसा करके हम दूसरों पर कम और अपने पर अधिक उपकार करेंगे .... इस बात पर आओ दोस्तों सोचना शुरु करे ... एवं उस विधि की तलाश जारी करे जो हमारी स्वयं सुधार की ताकत को उजागर करे .. !
                
                  चिंता मत करो ... स्विस बैंक में रखा पैसा देर सवेर घर आ जायेगा पर उसके आने से पहले हम उसका सदुपयोग करने लायक हो जाये इसकी तैय्यारी करना भी तो जरूरी है ... ११ सदस्य जो लोकपाल के बनने वाले है .. उनकी ट्रेनिंग और खोज करना क्या कम कठिन काम होगा ... वो ग्यारह अगर एक मत नहीं हुए तो उन्हें कौन समझाएगा .. और उस समझाने वाले को कहाँ से लायेंगे ... अतः जरूरी है सभी सच्चे ह्रदय से अपना सुधार करने की सोंचे ... 

            काला धन नाम से ही काला है अगर हम मन से काले रहे तो कालाधन आते ही अपना असर दिखाना नहीं शुरु कर देगा ? काला धन भारत आये इससे पहले सबके अन्दर संतोष धन आ जाये तो सोने पर सुहागा नहीं होगा .. पूत सपूत तो क्यों धन संचय ..पूत कपूत तो क्यों धन संचय ...! 


               एक स्वर से हमें भ्रष्टाचार से लड़ना है .. किसी तरह हार नहीं मानना है .. पर साथ ही साथ स्वनिरिक्षण, आत्मनिरीक्षण की प्रक्रिया को जितनी जल्द हो सके शुरु कर देना चाहिए ! भ्रष्टाचार अकेला आदमी नहीं कर सकता .. यदि हमारे अन्दर धैर्य, साहस और सहनशीलता की बढोतरी हो सके तो भ्रष्टाचार का सहारा लेने की, उसे पालने पोसने की, उसे बढावा देने की जरूरत ही नहीं बचेगी /

             कोई सरकारी मुलाजिम अगर किसी काम को नहीं कर रहा हो और हम अगर थोड़ी देर भी उसके सामने धैर्य और सहनशीलता और उसके प्रति मैत्री भाव के साथ टिक जायेंगे तो वह ज्यादा खड़ा नहीं राह पायेगा ... यही तो गांधीजी ने किया .. उनके कई उदाहरण हमारे सामने है एवं विश्व उनकी इस क्षमता का कायल है ...हमारे लिए वे घर के जोगी के सामान है ... पर नहीं हमें अपने अन्दर इन उत्तम गुणों का विकास करना ही होगा.. 

                आज सौभाग्य से ऐसी विधि हमारे देश में उपलब्ध है जिसका उपयोग करके हम अपने अन्दर धैर्य, साहस, सहनशीलता, ईमानदारी, इत्यादि अतिआवश्यक गुणों का स्वभाविक विकास कर सकते है ... अपने भले के लिए .. और उसके बाद सबके भले के लिए ! काले धन और भ्रष्टाचार की बाहरी लडाई में हम तभी १०० % जीत

                हासिल कर पाएंगे जब उसकी जड़े जो हमारे सबके मनों में है उन पर भी वार हो .. जड़े सुधरेंगी तो पेड़ अपने आप हरा भरा हो जायेगा .. अतः सारा जरूरी काम चलता रहे ... सारी लड़ाईयां हम लड़ते रहे.. अगर हमारे मानस की कालस उजास में हम नहीं बदल पाए तो .. घोटाले, चोरी , लूट, एवं अनैतिक आचरण रूपी राक्षस रूप बदल बदल कर हमारे सामने आते रहेंगे ... एक बार थोडा रुक कर हम इस पर विचार करें .. आज के हालातों में यही करणीय है !