हम अगर ध्यान से देखे और जिम्मेवारी से आकलन करें तो हम सभी अपने हालातों के लिए 100 % खुद ही जिम्मेवार होते हैं ...( और अगर ऐसा नहीं हो , तो गीता का सनातन नियम " जैसे कर्म वैसे फल " अपना अस्तित्व ही खो देगा ... जो की असंभव हैं )
जैसे जैसे अनुभव बढ़ता जाता हैं ... या इन्सान सकारात्मक होकर सोचता हैं ... वैसे वैसे अपने आप को हर बात के लिए जिम्मेवार मानने का प्रतिशत 0- से 25 फिर 50 फिर और ज्यादा बढता जाता हैं ... अराजकता जब फैलती हैं ... जब हम अपने आप को 0 % और दूसरों को एकदम 100 % जिम्मेवार मानते हैं या मानने का प्रयास शुरू करते हैं ... पर इससे जनमानस में गहरा असंतोष उपजता हैं ... और वह इस तरह के इंसानों को प्रथम दृष्टया मसीहा मान लेती हैं ... पर अंततः ... निराशा के गर्त में ही इस तरह के लोग चले जाते हैं ... और इस तरह की मानसिकता के लोग अपनी ईमानदारी या शुचिता को भी प्रचार का हिस्सा बनाकर अपना हित साधते हैं और कई कई युवाओं को गुमराह कर फिर परिदृश्य से गायब हो जाते हैं ...
ईमानदारी एक निहायत निजी सदगुण हैं ... और इसका प्रदर्शन तो बिलकुल ही नहीं होना चाहिए ... इसकी खुशबु अपने आप फैलती हैं ... और फूलों की खुशबु की तरह हवा की दिशा में ही नहीं आठों दिशाओं में बेरोकटोक फैलती हैं .... विनम्रता के साथ ईमानदारी का गहरा रिश्ता इसे और महकाता हैं ... और इसकी पहुँच का विस्तार करता हैं ...
अगर हमारे युवा ... आजकल जो गांधीवाद के नाम पर आदोलन के फैशन पर ना जाएँ ... और महात्मा गाँधी को जानने का स्वयं प्रयास करें ... तो हमारे युवा पाएंगे की उनके हौसलों को जैसे नए पर लग गए हों ... और उनकी दृष्टी समग्रता की ओर बढेगी ... न की संकुचित होकर ... निराशा की अंधी सुरंग में दौड़ लगाएगी /
1957 की फिल्म " चांदनी पूजा " का यह गीत कवि प्रदीप की यह ओजस्वी रचना है और आपके सहयोग को प्रस्तुत हैं ...
हमारे वर्तमान कर्म ही भविष्य बनाते हैं ... और आज जहाँ हम हैं यह पूर्व कर्मों का ही प्रताप हैं ... यह भाव हमें सकारात्मकता से भर भर देते हैं ...
आप शायद सहमत न होंगे ... और सहमति का कोई आग्रह भी नहीं .... फिर भी आपकी प्रतिक्रिया का आना स्वागत योग्य हैं /
भला हो ///