रविवार, 7 अक्तूबर 2012

जिंदगी एक कटी पतंग ..?







                 कटी पतंग का जीवन फिर हवाओं के रुख और उसको लुटने वालों पर निर्भर होकर रह जाता हैं ... ठीक वैसे ही हमारी सब की जिंदगी सांसों की डोर से बंधी रहती हैं ... जन्म से लेकर जीवन के अंत तक बस इसी साँस की डोर के आसरे जीवन के अस्तित्व का संघर्ष चलता रहता हैं / ठीक मृत्यु के समय भी साँस की रफ़्तार से ही अंदाजा लगाया जाता हैं ... कि ...  कितनी सांसे बाकि हैं ... और तभी साँस कि डोर टूट जाती हैं ... मृत्यु हो जाती हैं ... लो कट गयी जीवन कि पतंग ... पर उसके बाद भी जीवन रूपी पतंग लुटती नहीं ... वह फिर किसी अन्य साँस डोर से जुड़ कर आकाश में फिर पहले की तरह उड़ने लगती हैं ... और नए जीवन के लुटेरे के संग फिर आसमान में तन जाती हैं / 

               जीवन के रहते भी कभी कभी निराशा के झंझावत इतने उमड़-घुमड़ कर उठते हैं कि सहन शक्ति जवाब देने लगती हैं ... सांसे उखड़-उखड़ जाती हैं ... मन जैसे शरीर का साथ छोड़ने लगता हैं ... जीवन की पतंग उखड़ती -पिछड़ती सांसों के आगे पस्त हो जाती हैं ... वह यह मान कर कि,  अब कटी तब कटी , संघर्ष छोड़ नाउम्मीदी के तूफानों में झोके खाती हैं ... पर तभी ऐसे हालातों में कुशल पतंगबाज डोर में थोड़ी डील दिया करता हैं ... 

               कभी कभी पतंग कट जाएँ ऐसे बुरे इरादों से पेच डालने वालों की बदनीयती के समय भी ... वह डोर की डील का ही सहारा लेता हैं या सुसमय जान फिर डोर एक साँस मैं खींचता हैं ... और अक्सर ऐसे हालातों में सटीक निर्णय पतंग को झंझावातों से ऊपर उठाकर एक बार फिर बुलदियों पर ले जाते हैं /  जैसे पतंग बाजी मैं डोर का वैसे ही जीवन में सांसों का कमाल का महत्त्व हैं ... इसलिए सांसों और हमारे जीवन कि तरगों का सम्बन्ध जानना हमारा फर्ज हैं ... ताकि जीवन जीना आ जाएँ !!

              1970 ' कि सुपर हिट फिल्म " कटी पतंग " का यह गीत आनंद बक्षी साहब कि एक संजीदा रचना हैं ... राहुल देव बर्मन साहब कि सटीक मौसुकी और राजेश खन्ना साहब और आशा पारेख जी का सजीव अभिनय इस गीत के प्राण हैं / नैराश्य के गहन भावों को बड़ी नजाकत से दोनों ने बखूबी अभिनीत किया है ... और संगीत की महीन डोर सी लता जी की आवाज इस गीत रूपी पतंग को आसमानी बुलदियों तक बेरोकटोक ले ...  सपनो के देवता को अपनी भावांजलि अर्पण करके ही उमंगो के मुकाम तक जाती हैं /