सीता जी पर जब सवाल दागा गया था ... तब भी सवाल करने वाले पर लोग मोहित हो गये थे ... खुलकर सवालिए पर कुछ न कर सके और फिर राम जी को अग्नि परीक्षा लेनी पड़ी .... और सीताजी को देनी पड़ी ... और नतीजे सामने थे /
सवाल करने वाले तब भी वहीं के वहीं रहे .... समय बदल गया ... राजा बदल गये ... और हम कहानियां सुनते और गाते रह गये
सवाल करने वाले हमेशा वहीं खड़े रहते हैं ....
और उत्तर लिखने वाले ही आगे बढते हैं ... क्योंकि सवाल करने वाला ... किसी भी हद तक केवल सवाल ही करता हैं ... उसे जवाब में कभी रूचि नहीं होती ... वह उकसाता हैं की जवाब मिले तो वह अगला सवाल करें ... फिर अगला सवाल करें .... तभी अपने सवालों पर ख़ामोशी उसे कचोटती हैं ... वह अधीरता होकर आननफानन में सभी को नकारता हैं ... हाथ पांव पटकता हैं ... किसी जिद्दी बच्चे की मानिंद सड़क पर लोट जाता हैं ... अपने ही धरने को लपेटता हैं ... अपनी रीति बदलता हैं अपनी नीति बदलता हैं ... वह अधीर हो उठता हैं .... ऐसे शरारती बच्चे पर कोई हो अगर वह बच्चे के हर वार पर वार करें ... उसी के लहजे में सवाल करें जवाब करें तो लोग उस बच्चे को नहीं उस बड़े को ही टोकेंगे , बड़े को ही रोकेंगे .... अतः ख़ामोशी ही उसका इलाज हैं ... ख़ामोशी ही उसे उजागर करेगी ... खामोशी ही उसे उसके असली स्वरूप में लाएगी ... देखना एक दिन वह भी आएगा ...
कल हम सब ने देखा वह कितना अधीर और अभद्र था ... सोचे जरा ..??
कल तक वो जिनसे सवाल कर रहा था ... आज उनको ( अपने सवालों के जवाब न मिलने पर ) ही सिरे से बदजुबानी करते हुए नकार रहा था ... सत्य के सविनय आग्रह की धज्जियाँ उड़ा रहा था ...
चिल्लाने का इलाज ख़ामोशी हैं ... यही उचित हैं ... यही समुचित हैं /
समय बीत जाता हैं .... सवालिया वहीं का वहीं रह जाता हैं .... और अपने काम , अपनी करनी से , जवाब देने वाला आगे बढ जाता हैं ... कुदरत का कानून हैं भाई /
सत्याग्रह, दुराग्रह न बन जायें संभालो यारों ... !!!
भला हो !!!!