वंशवाद का विरोध हमें केवल घृणा सिखाता हैं … और वह भी उससे और केवल उस बात के लिए, जिसमें किसी वंश में जन्म लेना केवल संयोगवश ही होता है, यह सब जानते हैं।
इस तरह हम आज जिस वंश में जन्म लिए हैं उसका भी जाने - अनजाने अपमान कर जाते हैं .... हमें किसी वंश में जन्म मिले यह उस वंश का हम पर उपकार ही हुआ और असीम उपकार हुआ … अब आगे अपनी-अपनी करनी और यॊग्यता के बल पर ही अवसर मिलेंगे … जो भला हैं वह आगे बढ़ता जायेगा … जो नहीं वह थोड़ी दूर चलकर रुक भी जायेगा। ।
देखते नहीं कितने ऊँचे वंशों में जन्मे भी उतना बिकास नहीं कर पाये जितना वे कर सकते थे … ऐसे कई उदाहरण हैं … और बड़े- बड़े वंशों के हैं , इनमें सबसे बड़ा उदाहरण " गांधी " शब्द को सब कुछ मानने वाले और केवल इस शब्द का ही सब योगदान होता हैं, यूँ मानने वाले या किसी वंश में जन्म लेना ही कोई काबिलियत होती हैं, यूँ मानने वाले यहाँ एक बात पर गौर करें ---
म. गांधी जी के सबसे बड़े सुपुत्र हरिभाई गांधी अपने पिता कि इतनी विशाल प्रसिद्धि के बावजूद उनके बराबर तो क्या उनके बिलकुल विपरीत हुए … कारण यह नहीं कि महात्मा गांधी जी ने उन्हें आगे बढ़ने से कभी रोका हो … म. गांधी के दूसरे पुत्र भी हुए जिनका हम नाम भी ठीक से नहीं जानते हैं … इसका मतलब यह भी नहीं कि वे काबिल नहीं रहे होंगे … पर हाँ हो सकता हैं सबकी अपनी- अपनी कर्मों की लेखी और वर्त्तमान कर्मों कि नींव भी अपनी- अपनी जगह रहती ही हैं।
खैर कोई किसी से कितनी नफ़रत करें इसका कोई अंत नहीं … पर हाँ वास्तविक भला तो सद्भाव जगाकर ही होता हैं … जो जो काबिल हैं खूब आगे बढे … जो नकारा हैं वे पीछे रहने ही वाले हैं … कुदरत के इस नियम पर तो कम से कम भरोसा तो रहे।
नफरत का विस्तार रुके ..... मन शांत हो … दिल बड़े हों
कोई कितने ही बड़े वंश का हो … या हो निहायत छोटे वंश का -- कर्मों के फलों पर विश्वास रखे -- जैसे बीज वैसे फल -- जैसे कर्म वैसे फल -- और जैसे किसी बीज का फल जल्दी आता हैं , वह तुरंत मिलता हैं … और किसी बीज का फल काफी देर से आता हैं -- इस तरह हमारे अपने कर्मों के फल भी --- कभी तुरंत, तो कभी माध्यम देर से … और कभी- कभी काफी देर से समय पाकर आते हैं … कभी- कभी तो एक बार फल देकर रुक जाते हैं -- कभी- कभी बार- बार फल मिलते हैं --- और हाँ कभी- कभी तो जन्म जन्मान्तरों तक मिलते हैं। आओ हम सभी अपने- अपने कर्मों पर नज़र रखे … भले कर्म करें , नफ़रत का कर्म नफ़रत के फल ही लाएगा और सद्भाव का कर्म वैसे ही सद्भाव रूपी फल लाएगा।
आओ इस अमूल्य और अतुलनीय नियम को केवल मान कर ही ना रह जाएँ … उस पर घोर विश्वास करके ही ना रह जाएँ -- अमल करें -- क्योकि अमल ही बीज बनते हैं --- और उन बीजों के ही तो फल ही तो आगे आना हैं।
सबका भला हो !!!