देश में गांधीजी के आदोलनों की सफलता से प्रभावित होकर नित- नए आन्दोलन चलाये जा रहे हैं ... पर हालिया आन्दोलनों में चीख-चीख कर यह कहना की यह सब गांधीजी के सत्याग्रहों की तर्ज पर हो रहा हैं ... केवल युवाओं और जनमानस में यह भ्रम पैदा करके रह जाता हैं कि , आजकल के ये आन्दोलन गांधीजी के ऐतिहासिक सत्याग्रहोंकी तर्ज पर हैं ... और अनायास ही जनता में हालिया के आन्दोलनों के प्रति सहज आदर भाव उमड़ पड़ता हैं ... इसआदरभाव को ज्यादा से ज्यादा प्रचार मिले इस लोभ से अनसन / उपवास की पुंगी भी खूब बजायी जाती हैं ...
नील की खेती में हो रहे अत्यचारों के विरुद्ध म. गांधीजी का पहला सत्याग्रह ही अभूतपूर्वरूप से सफल हुआ था ... और देश ने उनकी ओर सुखद आशाभरी नजर से देखा था ... और देश का भरोसा आखिरकार जरा भी गलत नहीं सिद्ध हुआ ...
गांधीजी ने अनसन / उपवास का उपयोग कभी भी विरोधी पर दबाव बनाने के लिए नहीं किया ... हाँ जब जब भी इनका उपयोग हुआ अपनी गलती पर / अपने कार्यकर्ताओं की गलती पर सुधार या प्रायश्चित के लिए ही हुआ ...
आजकल के एक आन्दोलन में बहुत कुछ म. गांधीजी के " नील सत्याग्रह " की हुबहू नक़ल ही हैं ... पर इनमें सच टुकड़ों टुकड़ों में सच हैं ... और बहुधा तो असत्य ही हैं ... इसीलिए अनर्थकारी हैं ... अप्रभावी हैं ...
युवा निराश ना हो ... वे कुछ तय करें ... इससे पहले म. गाँधी जी के नील आन्दोलन पर अपनी जानकारी बढ़ा ले ... म. गांधीजी की जीवनी " सत्य के प्रयोग " के अध्याय 11 से 20 तक में सत्याग्रह क्यूँ सफल होते हैं ... इस पर काफी कुछ अनसुनी जानकारियां उपलब्ध हैं ... हमारे युवा स्वयं अध्यनशील हो और जाने क्यूँ म. गांधीजी की ओर और उनकी नीतियों की ओर दुनिया आशाभरे भरोसे से निहारती हैं ... और यह जानना चाहती हैं ... क्या आज भी गाँधी के आजमाए रास्ते प्रासंगिक हैं .... ऐसे में हमारी जिम्मेवारी और बढ़ जाती हैं .... हमारी श्रधा उनके प्रति विवेकशील श्रद्धा बने और हमारा विश्वास उनके प्रति सुदृढ़ हो ... और हमें तुलात्मक रूप से सही और गलत की पहचान होने में मदद मिले ... हमारा सत्य के प्रति दुराग्रह ... विनयशील आग्रह में कन्वर्ट हो ... यूँ करके हम गाँधी पर कोई एहसान नहीं करेंगे ... अपितु नयी और सकारात्मक उर्जा से स्वयं भर-भर उठेंगे ...
. .. अपने भले के लिए ... अपने कल्याण के लिए ...