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बुधवार, 23 जनवरी 2013

मोबाईल की सिम .. और घंटी






              भी कभी कोई बात उदाहरणों से खूब समझ आती हैं ... 

                कल हुआ यूँ की किसी ने एक प्रश्न पूछा ... क्या ईश्वर सब देखता हैं ?  ... और लगे हाथों यह कहने लगा ... यह बात फजूल हैं ,  समझ से परे हैं और नितान्त अवैज्ञानिक तो है ही .....

                मैं अवाक था ... मेरी जितनी समझ मुझे जान पड़ी वह नाकाफी लगी , उसके प्रश्न के आगे गौण लगी ... खैर जैसे-तैसे शुरुआत में समर्थन ही किया ताकि चर्चा जारी रहे ... तभी मोबाइल की घंटी बजी ... और इधर दिमाग में एक विचार कौंधा ...

                 मैं कहने लगा ... देखो भाई ... हम मनुष्य भी अब तो काफी एडवांस हो गए हैं ... अब देखों  ना इस मोबाइल की चिप और इसके IMI  no  .  की वजह से हम पर लगातार कोई नजर रख रहा है ... हमारी बातचीत , पल पल की हलचल इसमें  एक हद तक दर्ज हो जाती हैं ... और रोज इसके सुपरिणाम और दुष्परिणाम हमारे सामने उजागर हो ही रहे हैं ... 

                अब सोचो और इतना तो मानते ही होंगे की " ईश्वर " सबका बाप हैं ... हर मामले में ... और समझो वह भी इतना भी फुरसती नहीं की वहां  ऊपर आसमान में बैठा - बैठा दूरबीन लिए  सबको देखता रहे ... लगातार ... बिना आराम .... नहीं उसने भी हम सबके दिमाग में एक- एक ऐसी  ही चिप फिट कर रखी हैं ... जिसे थोड़ी देर के लिए " आत्मा " भी समझ लो ... अब वही चिप हमारी हर हरकत को दर्ज करती जाती हैं अथक ... और जब-तब जरुरत के हिसाब से हमारे मानसिक , वाचिक , और कायिक कर्मों के फल सही समय आने पर पके पकाए हमारे सामने परोस  देती हैं .... उसी चिप में बीज और वहीँ से वह फल उत्पन्न कर देती हैं हमारे शरीर पर , हमारी वाणी पर , हमारी काया पर ...



              आधुनिक  भाषा में आधुनिक तकनीक के सहारे मेरा  जवाब सुन वह फिलहाल प्रभावित तो दिखा ... 

                   मैंने उससे कहा ... देखना ध्यान से यह चिप " गरम " हो जाती हैं ...जब जब हम मन में क्रोध जगाते  हैं ... या जब - जब हम निंदा में रत रहते हैं .... और उसकी  गर्मी साफ महसूस होती हैं ... यह चिप " शीतल " रहती हैं ... जब जब हम मन में सद्भाव जगाते हैं .... जब - जब हम सकारात्मक रहते हैं ... शायद इसी कारण  हमें सभी तरफ से क्रोध, निंदा , चुगली , गाली -गलौच , हिंसा , व्यभिचार , नशे पते से दूर रहने की सीख  लगातार मिलती रहती हैं ... कभी कभी तो बिन मांगे ही ... ताकि हमारा भविष्य ठीक रहे ,  हम ठीक रहे ... किसी पर एहसान के लिए नहीं स्वयं अपने भले के लिए ...  

                          यह जान लो यह चिप मानसिक कर्म पर अगर इतनी संवेदनशील हैं तो वाचिक और कायिक कर्म पर कितनी होगी ... साफ हैं 

                        अतः इस चिप को मैली मत करो ... और जो कुछ मैली हैं उसे डिलीट करो ... यह दोनों बात मिल कर ही पूर्ण धर्म हुआ ...

                        एक बार भगवान् बुद्ध के पास एक बुढिया  मायी आई ... और निवेदन किया ... मुझे सरल - सरल शब्दों में धर्म समझाए महाराज ... मैं भी समझना चाहती हूँ ... भगवान् ने कहा धर्म समझना बड़ा सरल हैं ... सुनो मायी तुम भी सुनो ... 

   1) सभी अकुशल कर्मों से ( मानसिक,  वाचिक, शारीरिक ) दूर रहना धर्म हैं ...

    2)  सभी कुशल कर्मों से ( मानसिक,  वाचिक, शारीरिक ) के संग्रह को बढ़ाना  ( सकारात्मक होकर जीना ) धर्म हैं ... 

    3) मन को निर्मल करते रहना ( मन के मैल डिलीट करते रहना )... धर्म हैं 

                            पूर्ण धर्म हैं 

                                                     भला हो !!!