कमजोर वर्ग की आवाज उठाने वाले को ताकतवर और दबंग मुर्ख कहकर नज़रअंदाज करते दिखें तो समझो उसकी आवाज से दबंगों में बेचैनी हैं ।
और यही बैचेनी जल्द बौखलाहट में तब्दील होकर दबंगो की कमजोरियों को उजागर करती जाती हैं ।
मित्रों म. गांधी भी चंपारण में किसानों की आवाज बने थे । अंग्रेजों ने पहले पहल गांधी का मज़ाक बनाया फिर भी गांधी को सविनय आन्दोलनरत देखकर बौखलाए पर गांधी डटे रहे फिर अंततः किसानों की जीत हुई । इस तरह विनय , धैर्य , सच से लबरेज निरंतरता के आगे दबंग और गर्वीले तथा गांठ गठीले अंग्रेज पस्त पड़ते गए ।
कमजोर की आवाज बनना लोकतंत्र की राह में दुरूह पर करणीय कर्तव्य हैं ।
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