रविवार, 1 फ़रवरी 2015

युद्ध की भली नीति



                साम, दाम, दंड और भेद ये चार युद्ध की प्रमुख नीति होती हैं । ऐसा सामान्यतः माना जाता हैं । और इनका सन्तुलित प्रयोग कोई करें तो वो सफल होता हैं ।

                पर मित्रों - म.गांधी ने अंग्रेजो से लड़ते समय इनमें से किसी का भी रंच मात्र भी उपयोग नही किया । वे केवल सत्य के सहारे चले और अहिंसा को हथियार बनाया । इसलिए बंदूकों से लड़ने में माहिर अंग्रेज , हिंसा को हथियार बनाने वाली हुकूमत, अहिंसा से कैसे लड़ें यह समझ नही पाई और सत्य के प्रकाश में पस्त पड़ती गई । अहिंसा के हथियार को चलाने के लिए अभय नामक वस्तु की बड़ी जरूरत पड़ती हैं । अभय का आशय ये के खुद भी ना डरे और दुश्मन को भी ना डर लगें, वो भी निश्चिन्त हो के मेरे साथ छल नही होगा । यूँ होते ही दुश्मन का सीधे सत्य से सामना होता हैं ।

                मित्रों, सामदाम, दंड भेद की लढाई हर तरफ लड़ी जाती हैं पर इसमें हारने और जीतने वाले दोनों चैन से नही जी पाते हैं ।

                 और गांधी का जीवन देखों उन्हें कभी किसी से रंच मात्र भी डर नही लगा । आजीवन वे बिना सुरक्षा रहे और नोवाखली के सदी के भीषणतम दंगों में तो अकेले भी घूमें और जिन दंगों को सेना भी शांत नही कर पाई थी उन्हें शांत ही नही किया वहां सद्भाव की स्थापना भी की ।

                  गांधी का मार्ग मुश्किल नही बड़ा आसान हैं । किसी को आपसे भय ना लगे यूँ अपना व्यवहार रखो । सो बदले में आपको भी अभय ही मिलेगा इसका भरोसा रहे ।

क्योंकि "जैसे बीज वैसे फल" कुदरत का यह नियम तो है ही सबके साथ ।

सबका भला हो |||