सभी ठगोरी विद्याएँ …. येन केन प्रकारेण चलती रहेंगी … कुछ बहुत स्वस्थ ठंग से ताकि कोई शक ना हो … और कुछ बहुत ठीले- ठाले तरीके से भी की लोगों में उजागर होती रहे … ठगोरे फंसते रहे … और नासमझ उलझते रहे।
आज कोई नज़रों में खला हैं कल कोई और खलेगा … आज किसी ने ठगा हैं कल कोई और ठगेगा।
दरअसल लोगों के इन बाबाओं के चक्कर में उलझने की जड़ हैं कि हम कर्म के सिद्धांत को समझना नहीं चाहते … हम अपने महान ग्रन्थ गीताजी को भी केवल पुजते हैं … उसका मर्म समझना नहीं चाहते … इसी तरह अन्य सम्प्रदायों के ग्रंथों में भी … सभी जगह कर्म और उसके फलों का सिद्धांत प्रतिपादित हैं ही …. इसी एक मायने में सभी संप्रदाय एक हैं।
सीधी बात हैं " जैसे कर्म ठीक वैसे फल " अब यहाँ चतुराई से यह जोड़ा गया और शायद बहुत समझदारी से यह जोड़ा गया की भले कर्म करोगे तो स्वर्ग मिलेगा …. और बुरे कर्म करोगे तो नर्क मिलेगा। यहाँ तक भी सब ठीक था … पर आगे चलकर सम्प्रदायों के ठेकेदारों ने यह भी जोड़ा की कर्म के फलों में कोई चेंज कर सकता हैं तो वह उपरवाला / भगवान् कर सकता हैं …. और उसे कैसे पटाया जाय यह हम बताते हैं … और कौन नहीं चाहेगा की यह उपाय ना अजमाए …. बस यही आकर कर्म के सिद्धांत के ठीक विपरीत चलने का जुगाड़ हो गया … और सज गयी दुकानें कुछ पाश भी , कुछ कामचलाऊ भी।
हम समझना नहीं चाहते की कोई हमारी केवल चमचागिरी ही करें … और हमारे कहे अनुसार जरा भी न चले , तो हम उसे पसंद नहीं करते … और यह खूब समझ बैठे हैं की उपरवाले को हम उसकी वंदना , आरती , भेंट , पूजा , बलि , इत्यादि ( कोई नाम दो ) से खुश कर लेंगे … नितांत असंभव हैं भाई …. जिस तरह हम भेदभाव को पसंद नहीं करते उस तरह उपरवाला भी भेदभाव नहीं करता … जैसे कर्म ठीक वैसे फल ठिका देता हैं … वह भी बिना हेरफेर के … बिना देर के !!!
हम यह जिस दिन तहे- दिल से मान लेंगे की हमारे कर्म ही हमारे सच्चे बंधू हैं , हमारे कर्म ही हमारे सच्चे तारक हैं …. उस दिन हमारे कदम सन्मार्ग पर तीव्रता से उठेंगे ही लगेंगे !!
कर्म हमारे बंधू हैं , कर्म हमारे मीत ,
चलें कर्म की रीत ही , रहे धर्म से प्रीत।।
सबका भला हो !!!