1947 में जब हम आज़ाद हो गए तो म. गांधीजी को एक नया काम मिल गया और वो था " हिन्दू मुस्लिम एकता का " काम । हमारे कौमी नेताओं के चलते दोनों समुदाय एक दूसरे के प्रति नफरत के शिकार होकर भटक गए थे ।
म. गांधी 28 अप्रैल 1947 अपनी शाम की प्रार्थना सभा में वे कहते है - "आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मुझे ऐसे पत्र मिलते रहते है , जिनमें मुझपर ये आरोप लगाया जाता है की मुसलमानों के मित्र का काम करके मैंने हिन्दू हितों को हानि पहुंचाई हैं । यदि मेरे 60 वर्षों के सार्वजनिक जीवनसे यह प्रत्यक्ष प्रमाण नही मिला तो मैं शब्दों से लोगों को यह विश्वास कैसे दिला सकता हूँ कि मुसलमानों का मित्र बननेकी कोशिश करके मैंने अपने को एक सच्चा हिन्दू ही सिद्ध किया हैं । और हिंदुओं की तथा हिन्दू धर्म की सच्ची सेवा की हैं । सभी धर्मों की सच्ची शिक्षा का सार यही है की सबकी सेवा करना और सबका मित्र बनना चाहिए और बिना भेदभाव ईश्वर की समग्र सृष्टि की सेवा के द्वारा ईश्वर की सेवा करनी चाहिए । यह पाठ मैंने अपनी माँ की गोद में सीखा था ।
अपने मित्रों के प्रति मित्रता का भाव रखना बहुत आसान है । परन्तु जो अपने को हमारे शत्रु समझते हों उनसे मित्रता करना ही सच्चे धर्म का सार हैं ।"
इस दिन बापू रात को 9:30 बजे ही सोने चले गए थे कारण उपवासों के चलते थोड़ी कमजोरी भी थी । पर अचानक रात में नींद खुली तो ध्यान आया की सोने से पहले सूत कताई का काम तो वे भूल गए थे सो उन्होने देर रात कुछ देर सूत काता और फिर सो गए ।
मितरो, भूल सुधार करने में म. गांधी एक क्षण की भी देरी नही करते थे ।।
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