हमारे देश में कितनी विविधतायें है देख कर अचरज होता है । ये विविधतायें ही हमारी असली ताकत हैं । इतनी विविधतायें किसी एक देश में संसार में और कहीं नही हैं ।
भारत की जनसंख्या का लगभग 13 से 18 प्रतिशत हिस्सा ऐसा भी है जो जनजातियों से हैं । ये जनजातियां सम्प्रदाय, उंच नीच , जात पात , पोथी पुराण , रीतिरिवाज , खानपान , पहनावा , दिखावा , धर्म की रक्षा , आधुनिक शिक्षा और संस्कृति से कहीं दूर अपनी ही दुनिया में मस्त रहती हैं ।
इनके परिवेश को सुरक्षित संरक्षित करने के लिए सरकार भी कई कदम उठाती हैं । नीरव जंगलों में, भौतिकता से दूर सुदूर पहाड़ी अंचलों ये सभ्यता अपनी तरह से अपनी दुनिया में जीती हैं और वो भी बिना शिकवा शिकायत के । बिना शोर के ।
कभी-कभी लगता हैं अगर ये लोग हमारी शहरी सभ्यता में रूचि लें तो शायद अचरज करेंगे की हम लोग किस तरह से खानपान के लिए , संप्रदाय की रक्षा की चिंता और उंच नीच के लिए दिन रात लड़ते झगड़ते और सभ्य होने के फेर में असभ्यता की गला काट प्रतियोगिता में उलझे रहते हैं ।
भला हुआ की ये जनजातियां सम्प्रदायवाद से दूर, जातपात से दूर, विकास से दूर, सुविधाओं से दूर अपना जीवन गुजार कर हमें आइना दिखाती रहती हैं ।
आओ हिलमिल रहे । अपने से अधिक दूसरों की चिंता करें ।सहिष्णुता का मोल समझे । जियो और जीने दो के सन्देश की महत्ता समझे ।
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