मन की निर्मलता सबसे पहले आँखों में झलकती हैं, और आँखें ही सबसे पहले मन की निर्मलता तो ग्रहण करती हैं। निर्मल मन व्यक्ति की आँखे गजब का आकर्षण और चुंबकीय सम्मोहन लिए होती हैं।
आँखें जब जीवन से भरी होती है तो उनमें फिर प्रकाश की उजली किरणें ठहरती नहीं , दोहरी होकर देखने वाले की तरफ लौट- लौट आती हैं। इस गीत में चित्रकार अपनी कल्पना की आँखों की तस्वीर बनाने से पहले शून्य में अपनी तुलिका को कुछ यूँ घूमता हैं जैसे वहाँ शून्य में ही अपने सारे रंग भर देगा, तब तक दरवाजे के हिलते पर्दों के सहारे जीवन की सुंगंध भी हौले से वहाँ आ रही होती हैं।
आओ सुने 43 साल पुरानी फ़िल्म " सफ़र " का यह गीत। हमारे युवा इस गीत के माध्यम से उस समय के माध्यम वर्गीय जीवन को भी निहारे, एक भली सादगी के साथ उन्हें हौले- हौले विकसित होते तब के भारत के भी दर्शन होंगे।
इन्दीवर साहब की अनुपम रचना , कल्याण जी आनंद जी के संगीत सुमधुर में ढलकर यह गीत दिमाग पर गहरा सकारात्मक असर छोड़ता हैं। इस गीत में कमाल सादगी है, और हाँ जीवन भी भरपूर हैं। देखें तो सही, जरा जी कर , हाँ वही , सुनकर !