लोकप्रिय पोस्ट

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

अन्धकार से प्रकाश की ओर ...

             

भगवान् बुद्ध ने जिस ज्ञान का साक्षात्कार किया , उसका भारतीय धर्म - साधना में क्या स्थान हैं , यह प्रश्न हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं । इसकी ठीक अवगति प्राप्त कर लेने पर उस महत अनुभव की ओर हमारी श्रद्धा बढेगी , जिसे तथागत ने प्राप्त किया था और जो ज्ञान के उस रूप से आगे का विषय हैं , जिसकी अभिव्यक्ति वैदिक वांग्मय में हुई है। अधिक विस्तृत विवेचन न कर यहाँ केवल दो स्फुट विचार रख देना उपयुक्त होगा।

वैदिक ऋषि ने किसी अज्ञात परा शक्ति से प्रार्थना की थी ...

" मुझे असत से सत की और ले चल।


मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चल।


मुझे मृत्यु से अमृत की ओर ले चल। " 



कितने उदात्त है ऋषि के ये शब्द ... असतो माँ सद्गमय ... तमसो माँ ज्योतिर्गमय ... मृत्योर्माS मृतं गमय ...


वैदिक ऋषि की यह प्रार्थना सब काल के लिए मानवता की सर्व श्रेष्ठ प्रार्थना हैं। वैदिक युग की साधना और आशा-आकांक्षाओं की पूरी अभिव्यक्ति यहं हुई हैं। अब हम इस प्रार्थना के साथ उन उद्गारों को मिलाएं जिन्हें अभी सम्बोधि प्राप्त कर लेने पर भगवान् बुद्ध ने प्रथम बार प्रगट किया था।


" अविद्या नष्ट हुई , विद्या उत्पन्न हुई।


अन्धकार नष्ट हुआ प्रकाश उत्पन्न हुआ।


अमृत के द्वार खोल दिए गए हैं। " 



अहो गंभीर बुद्ध वाणी !!! ... अविद्या विह्तो , विज्जा उप्पन्ना ... तमो विह्तो , आलोको उप्पन्नो ...अपारुता अमतस्स द्वारा।


भगवान् बुद्ध ने अक्षरतः वही प्राप्त किया जिसकी प्रार्थना वैदिक ऋषि ने की थी। आकस्मिक होते हुए भी शब्दों और भावनाओं के क्रम तक में कितनी भारी समानता हैं , यह दोनों अध्यात्मिक अनुभवों की सच्चाई की द्योतक हैं। सम्पूर्ण औपनैषदिक साहित्य को छान डालने पर भी एक भी ऋषि का ऐसा उदहारण ना मिलेगा , जिसने अपने अनुभव के आधार पर इतनी परिपूर्णता के साथ घोषित किया हो कि उसकी अविद्या नष्ट हो चुकी हैं , अन्धकार विदीर्ण हो गया हैं और उसने अमृत को पा लिया हैं। वैदिक युग के लिए यह एक प्रार्थना हैं, आकांक्षा है। उसकी प्राप्ति तथागत की बोधि के रूप में हुई हैं। भारतीय आध्यात्मिक विकास का यह एतिहासिक क्रम हैं।


तथागत जब हुए तब भारत का विस्तार आज के अफगानिस्तान से लेकर सुदूर बर्मा देश तक और उत्तर में हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक एक था ... ( " उनके समय का भारत " विश्वगुरु " के नाम से भी जाना जाता था, उस समय सच्चे अर्थों में हमारे देश में शांति एवं समृद्धि का वास था / नैतिकता का इतना बड़ा निर्भीक प्रचारक संसार में दूसरा कोई नहीं हुआ, कर्मयोगियों में गौतम बुद्ध सर्वश्रेष्ठ है / उनके उपदेश इतने सरल की राह चलने वाला भी उन्हें समझ जाय / उनमें सत्य को अति सरलता से समझाने की अद्भुत क्षमता थी / उनके पास मस्तिष्क और कर्मशक्ति विस्तीर्ण आकाश जैसी और ह्रदय असीम था / वे मनुष्यों को मानसिक और आध्यात्मिक बंधनों से मुक्त करना चाहते थे / उनका ह्रदय विशाल था, वैसा ह्रदय हमारे आसपास के अनेकों लोगों के पास भी हो सकता है और हम दूसरों की सहायता भी करना चाहते हों पर हमारे पास वैसा मस्तिष्क नहीं / हम वे साधन तथा उपाय नहीं जानते , जिनके द्वारा सहायता दी जा सकती हैं / परन्तु बुद्ध के पास दुक्खों के बंधन तोड़ फेंकने के उपायों को खोज निकालने वाला मस्तिष्क था / उन्हौने जान लिया था की मनुष्य दुक्खों से पीड़ित क्यों होता है और दुक्खों से पार पाने का क्या रास्ता है / " ...स्वामी विवेकानंद )


उस कालखंड की गौरव गाथा ... अफगानिस्तान की पहाड़ियों में , पाकिस्तान स्थित तक्षशिला में , भारत में अजन्त एलोरा , बोधगया , नालंदा , सारनाथ यहाँ वहां सब जगह बिखरे अवशेषों के द्वारा अपने विराट अस्तित्व की कहानियां आज भी उसी तरह सुनाता हैं .. आज भी कोई इन जगहों की यात्रा करें तो वहां की सम्यक तरंगे विशिष्ट शांति का एहसास कराती हैं और साफ महसूस की जा सकती हैं ...