तुझपे कुर्बान ...
मन्ना-डे साहब की पुरजोर आवाज और ढोलक की मस्त लय इस गीत को सुनते वक्त मन को हौले से कुछ यूँ ले कर चल पड़ती हैं, ज्यूँ बैलगाड़ी अभी-अभी उबड़-खाबड़ रास्तों से निकल समतल में चल पड़ी हो ... और बैलगाड़ी के हिलने-डुलने-सा स्वभाविक अभिनय करते बलराज साहनी साहब इतना तन्मय होकर झूम रहे हैं की पूरा नज़ारा मन की पतंग को ऊँचे कहीं आसमान में ले जाता हैं ... कभी नहीं लगता की इस मनोहारी गीत के पीछे कितने सारे लोगों की मेहनत होगी ... क्योंकि सबकी मेहनत को इतनी ख़ूबसूरती से एक धागे में पिरोकर फिर यूँ जोड़ दिया गया हैं की फिर कहीं उन सबका ओर मिलता है न छोर... फिर तो बस गीत ख़त्म होने पर ही मनरूपी पतंग धरातल छू पाती हैं /
इस गीत में कई सहकलाकारों का जमघट है ... पर मजाल हैं कोई इस गीत की मस्ती से अलग नज़र आ जाये ... यहाँ तक की निर्जीव सा चम्मच भी ढोलक पर बराबर ताल में गिरता रहता है ... उस निर्जीव चम्मच के योगदान को भी संगीतकार रवि साहब ने बखूबी स्थान दिया हैं ... डिरेक्टर यश चोपड़ा साहब ने भी उसे बखूबी दिखाया हैं /
१९६५ में बनी यह फिल्म वक्त का यह गीत आज भी जब बजता हैं तो बरबस सबका ध्यान अपनी ओर खींचने की गजब की काबिलियत रखता हैं ... बलराज साहनी साहब एक अदद सादा इन्सान थे और उनका सादगी पसंद मन भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति बिना किसी कोशिश के सहज कर जाता था /
मन का सादगी पसंद और बाहर-भीतर एक-सा होना दुनिया को सकारात्मकता से महकाता रहता हैं ... ऐसा व्यक्तित्व इस धरा पर रहे न रहे उनके मन से निकली सकारात्मक तरंगे माहौल को यदा-कदा तरंगित करती रहती हैं /
इस गीत में कई सहकलाकारों का जमघट है ... पर मजाल हैं कोई इस गीत की मस्ती से अलग नज़र आ जाये ... यहाँ तक की निर्जीव सा चम्मच भी ढोलक पर बराबर ताल में गिरता रहता है ... उस निर्जीव चम्मच के योगदान को भी संगीतकार रवि साहब ने बखूबी स्थान दिया हैं ... डिरेक्टर यश चोपड़ा साहब ने भी उसे बखूबी दिखाया हैं /
१९६५ में बनी यह फिल्म वक्त का यह गीत आज भी जब बजता हैं तो बरबस सबका ध्यान अपनी ओर खींचने की गजब की काबिलियत रखता हैं ... बलराज साहनी साहब एक अदद सादा इन्सान थे और उनका सादगी पसंद मन भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति बिना किसी कोशिश के सहज कर जाता था /
मन का सादगी पसंद और बाहर-भीतर एक-सा होना दुनिया को सकारात्मकता से महकाता रहता हैं ... ऐसा व्यक्तित्व इस धरा पर रहे न रहे उनके मन से निकली सकारात्मक तरंगे माहौल को यदा-कदा तरंगित करती रहती हैं /