" ईमानदारी से पेट नहीं भरता .." दशहरा मुबारक हो ...
जब भी कोई समस्या सामने आये... उसका कोई ओर दिखे ना छोर तो जाने की समस्या बड़ी नहीं बल्कि छोटी हैं उसका समाधान बाहर नहीं बल्कि अपने अन्दर है...क्योकि हमारे मन का प्रमाद उस समस्या के लिए दूसरों को जिम्मेदार बताकर, दया का पात्र बनकर एक कोने में पड़ा रहना ज्यादा पसंद करता है / जैसे खुद का यथार्थवादी आकलन करके सुधार की कोशिशों में तो उसका जैसे विश्वास ही नहीं रहा / यही कारण है की दलाई लामा को भी भारत में व्याप्त बुराइयों ने एक हद तक हिला कर रख दिया ..वे कह गए की " भगवानों और देवतावों को सुबह शाम याद करने वाला हिन्दुस्तानी मानस इतना लाचार क्यों है कि वह अपने अन्दर व्याप्त बुराइयों कि ओर देखना ही नहीं चाहता " / निश्चित ही वे हमारे पुराने गौरवमयी तथा समृद्ध इतिहास के व्यापक परिपेक्ष में आज कि परिस्थितियों को लेकर चिंतित थे / उनका चिंतित होना इसलिए भी हमें यह सोंचने के लिए बाध्य करता है कि कठोर कानूनों कि बदौलत दुनिया में कहीं भी महत्वपूर्ण बदलाव नहीं लाया जा सका है /
आज भारत के पास दुनिया का सारा उच्च कोटि का अध्यात्म होते हुए भी वो इतना बेअसर क्यों है कि मानव मन अपने अन्दर कि बुराईयों से छुटकारा नहीं पा रहा है ? आये दिन सम्प्रदायों में जैसी कड़ी होड़ सी दिखाई देती है ... धर्म को सामने रखकर हमारे नेता लोग अपनी राजनीति को चमकने की लगातार कोशिशें करते जा रहे रहे है ... भोली जनता जो नहीं समझाना चाहती की उसके कर्म जैसे होंगे देर सबेर वैसे ही फल आना है ... कोई देवी, कोई देवता , कोई पीर, कोई फ़रिश्ता उसे नहीं बचा सकते ... अगर उसके कर्म बुरे होंगे तो नतीजे कोई नहीं बदल सकता ... पर जनता भुलावे में आ ही जाती है ... धार्मिक ग्रंथों का पठन पाठन करके देख लिया, व्रत - उपवास करके भी देख लिया , तीज - त्यौहार भी मनाते ही जा रहे है... पर क्यूँ हाथों से मन कि शांति फिसलती ही जा रही है ...इसलिए क्यों ना हम इस समस्या के दुसरे पहलु पर भी गौर फरमाएं ...राष्ट्र रूपी पेड़ को सुधारना हो तो उसकी जड़े जो एक-एक भारतीय के मन से सम्बन्ध रखती है क्या उस जड़ों का सुधार नहीं होना चाहिए ...आखिर कब तक हम पेड़ पर ऊपर-ऊपर से विषैले रसायनों का छिडकाव करते रहेंगे ? कब उसकी जड़ों कि ओर ध्यान देंगे ?
आज हम भ्रष्टाचार को कोसने में कोई कोताही बरतना नहीं चाहते ... कोई बरते तो वह हमें पसंद नहीं ... पर यहाँ थोडा सा रूककर सोंचे की सदाचार जो की भ्रष्टाचार की रामबाण दवा है ... जब तक एक-एक भारतीय के जीवन का अहम् हिस्सा नहीं बनेगा ... तब तक एक नहीं कई-कई जन -लोकपाल भी भ्रष्टाचार रूपी केंसर से हमें नहीं छुड़ा सकते ... हम इस बात को आज टाल सकते है ... पर सदाचार हमारे जीवन का हिस्सा बने इस बात को जितनी जल्दी हो सके हमें लागु करना चाहिए ... देखिये न एक भ्रष्टाचारी को भी हमेशा एक ईमानदार की ही तलाश क्योकर रहती है ... अतः स्वभावतः ईमानदार बने ..बनने का प्रयत्न करते जाय ... मन में विश्वास जगाये ...और इस बेवजह महत्व पा गयी बात की " ईमानदारी से पेट नहीं भरता .." को अपने मन से निकाल दे ...वर्ना भ्रष्टाचार का विरोध केवल दिखावा साबित होकर रह जायेगा ...मान लो जोर जबरदस्ती करके भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक काबू पा भी लिया ... और जन मानस में सदाचार कैसे बड़े इसकी कोई कोशिश ही नहीं की ...सदाचार के पौधे को विकसित ही नहीं होने दिया .... तो फिर पश्चिम के देशों जैसी हमारी हालत नहीं होगी ? जहाँ पर भ्रष्टाचार तो अवश्य कम पाया जाता है ... पर भावना शून्य और आपसी सद्भाव से दूर वहां का समाज कैसे आत्मकेंद्रित और खुदगर्जी की हदे पर करता जा रहा है ...यह क्या कम चिंता का विषय है उनके लिए .... और हम उन पर हँसते है ! एक तरफ तो बुरे आचरण को दूर करने के प्रयत्न होते रहे और दूसरी और सद्गुणों के संवर्धन का काम भी साथ-साथ चलता रहे .. तो सोने पे सुहागा होगा ... सचमुच मंगल होगा !!!
यह भी संभव है ...जन-लोकपाल जिस दिन से लागु होगा उस दिन को हम " भ्रष्टाचार विरोधी दिवस " के रूप में मनाने में करोड़ों का भ्रष्टाचार करने लगेंगे ....या करते हुए देखेंगे .... देखिये न आज जो भी फल अन्ना हजारे पा रहे है ... उसमें आखिर उनकी ईमानदारी ही का सबसे बड़ा रोल है ... नहीं तो कौन पूछता उन्हें ? ... कैसे हो पाता उनकी बातों का असर हम पर ? कैसे वो टिक पाते दूर तक इस लड़ाई में ?... जरा गौर करें ... मन में उत्साह जागेगा ही ... अपने भले के लिए सबके भले के लिए !!!
आज हम भ्रष्टाचार को कोसने में कोई कोताही बरतना नहीं चाहते ... कोई बरते तो वह हमें पसंद नहीं ... पर यहाँ थोडा सा रूककर सोंचे की सदाचार जो की भ्रष्टाचार की रामबाण दवा है ... जब तक एक-एक भारतीय के जीवन का अहम् हिस्सा नहीं बनेगा ... तब तक एक नहीं कई-कई जन -लोकपाल भी भ्रष्टाचार रूपी केंसर से हमें नहीं छुड़ा सकते ... हम इस बात को आज टाल सकते है ... पर सदाचार हमारे जीवन का हिस्सा बने इस बात को जितनी जल्दी हो सके हमें लागु करना चाहिए ... देखिये न एक भ्रष्टाचारी को भी हमेशा एक ईमानदार की ही तलाश क्योकर रहती है ... अतः स्वभावतः ईमानदार बने ..बनने का प्रयत्न करते जाय ... मन में विश्वास जगाये ...और इस बेवजह महत्व पा गयी बात की " ईमानदारी से पेट नहीं भरता .." को अपने मन से निकाल दे ...वर्ना भ्रष्टाचार का विरोध केवल दिखावा साबित होकर रह जायेगा ...मान लो जोर जबरदस्ती करके भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक काबू पा भी लिया ... और जन मानस में सदाचार कैसे बड़े इसकी कोई कोशिश ही नहीं की ...सदाचार के पौधे को विकसित ही नहीं होने दिया .... तो फिर पश्चिम के देशों जैसी हमारी हालत नहीं होगी ? जहाँ पर भ्रष्टाचार तो अवश्य कम पाया जाता है ... पर भावना शून्य और आपसी सद्भाव से दूर वहां का समाज कैसे आत्मकेंद्रित और खुदगर्जी की हदे पर करता जा रहा है ...यह क्या कम चिंता का विषय है उनके लिए .... और हम उन पर हँसते है ! एक तरफ तो बुरे आचरण को दूर करने के प्रयत्न होते रहे और दूसरी और सद्गुणों के संवर्धन का काम भी साथ-साथ चलता रहे .. तो सोने पे सुहागा होगा ... सचमुच मंगल होगा !!!
यह भी संभव है ...जन-लोकपाल जिस दिन से लागु होगा उस दिन को हम " भ्रष्टाचार विरोधी दिवस " के रूप में मनाने में करोड़ों का भ्रष्टाचार करने लगेंगे ....या करते हुए देखेंगे .... देखिये न आज जो भी फल अन्ना हजारे पा रहे है ... उसमें आखिर उनकी ईमानदारी ही का सबसे बड़ा रोल है ... नहीं तो कौन पूछता उन्हें ? ... कैसे हो पाता उनकी बातों का असर हम पर ? कैसे वो टिक पाते दूर तक इस लड़ाई में ?... जरा गौर करें ... मन में उत्साह जागेगा ही ... अपने भले के लिए सबके भले के लिए !!!
आजकल जब भ्रष्टाचार से लड़ने कि एक मुहीम सी चल रही है .... पर क्या वह अपने अंजाम तक पहुँच पायेगी जब तक एक एक भारतीय का मन लालच और अन्य विकारों से मुक्त होने को लालायित ना दिखाई पड़े ...ख़ुशी कि बात है कि आज हमें ऐसा रास्ता उपलब्ध है जिससे हम अपने मन के विकारों में कमी लाकर उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सकते है ....सबका भला हो ...सबका मंगल हो !!!!!
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