अन्ना के आन्दोलन के aftershocks अभी आ रहे है .. मुझे लगता है ..हम भारतीयों को समस्याओं के आसान हल कम ही पसंद आते है ... भ्रष्टाचार में कम या ज्यादा हमारा सबका योगदान होता है ... और हम सब इस आस मैं है कि जन लोकपाल हमारा कल्याण कर देगा ...भ्रष्टाचार केवल पैसों कि मांग करके काम कर देना या करवा लेना ही नहीं ...और भी आगे है ... भ्रष्टाचार याने बुरा आचरण ... बुरी या कड़वी बात कहना, चोरी करना, झूठ बोलना , हत्या ( हिंसा) करना , नशेपते का सेवन करना, व्यभिचार करना ... इत्यादि / और जो इस तरह के बुरे कर्म हमसे जाने-अनजाने हो जाते है वे तीन चरणों में संपन्न होते है ... पहला मानसिक , दूसरा वाचिक तीसरा कायिक / परन्तु तीसरा कर्म ही लोगों के सामने दिखाई देता है ... जबकि उस कर्म का जन्म तो मानसिक स्तर पर काफी पहले हो चूका होता है ... कुदरत मानसिक कर्म को देखती है ... और कानून कायिक कर्म को महत्व देता है ... वाचिक कर्म तो उसकी पकड़ में कभी कभी ही आ पाता है ... निरंतर हमारे मन में कर्म होते रहते है .. जिसका मन पर नियंत्रण है ...या यो कहे जिसका मन आपेक्षाकृत कम मैला हैं वह अपने आप को बुरे कर्मों से बचा पाता है ...( यहाँ यह गौर करे कि अन्ना स्वयं किसी कानून से डरकर ईमानदार नहीं हैं ) .. .
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कुछ समय बाद यह स्थिति आने वाली है कि जब हम यह देखेंगे कि लोकपाल जैसी संस्था पर भारी- भरकम खर्च करके भी बात नहीं बनी तभी शायद हमारी मानसिकता किसी और उपाय कि तरफ जाएगी ... क्योंकि समस्याओं के एलोपैथिक उपचार में हमारी चाहत प्राकृतिक उपचार से ज्यादा है / हम स्वयं कुछ नहीं करना चाहते , कानून का तकिया बनाकर सो जाना चाहते है ...पर बात नहीं बनेगी ... क्योंकि हमारे मन की जड़ों तक विकारों के पहुँच बन गयी है ... मन की जड़ो का उपचार किये बिना ऊपर-ऊपर से दवाओं का छिडकाव कितनी मदद करेगा भला ...?
हमारे मैले मन की सफाई हो ..मन की सफाई और मन पर नियंत्रण का उपाय हमारे हाथ लगेगा तब बात बनेगी ... जहाँ समस्या है वहीँ उसका हल भी सौभाग्य से मौजूद है ...वह है विपश्यना ध्यान साधना में ..!!! विपश्यना हमारी मदद करेगी ... मन की सफाई में ... साफ और स्वच्छ मन स्वभावतः ईमानदार और चरित्रवान बनता जायेगा ... सम्राट अशोक एक सफल राजा हुआ है हमारे देश में ... वह किस तरह सफल हुआ सुराज कि स्थापना में ..
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