पडौस का घर ... और घर में उसका घर ... जी हाँ ... एक छोटी सी, परी सी, चिड़िया ने बला की खूबसूरती से अपना एक घर बनाया हैं ... अपनी नन्हे बच्चो की खातिर ... अब घास फूस भी कहाँ शुद्ध रहे ... और इस चिड़िया ने किसी से शिकायत भी नहीं की ...ना ही किसी को कोसा ... अब देखो ना ज़रा इस घोंसले को ध्यान से ... किस मेहनत से उसने फायबर ग्लास के रेशों को गुंथकर प्लास्टिक की पन्नियों / सूखे पत्तों / जुट के रेशों का सदुपयोग कर अपना घोंसला बनाया हैं ...
इस घोंसले में उसके लगभग डेढ़ इंच लम्बे और कोई बीस -पच्चीस ग्राम वजनी दो बच्चे अभी दिनभर अपनी माँ के द्वारा लाये चुग्गे पर आश्रित हैं ... कुछ दिन और विश्राम करने के पश्चात् चिड़िया इस घोंसले को छोड़कर फिर खुली प्रकृति की गोद में उड़ जाएँ शायद ...
चिड़िया तुम्हारा मंगल हो ... मेरी मंगल कामना में तुम्हारा भी स्थान रहेगा ... तुम मुझे अनासक्त किस तरह रहे यह सिखा गयी ... पर तुम्हारी तरह बन सकूँ ... इसमें वक्त लगे मुझे शायद ...पर चल पड़ा हूँ ...