नफरत की बीमारी ....
आजकल नफरत की फसल खूब उगाई जा रही है ... कहाँ से आती हैं इतनी नफ़रत और कितनी घातक हैं हमारे स्वयं के लिए यह भी हम सब जान ले ... फिर करते रहे नफरत ! " जैसे कर्म वैसे फल " इस थ्योरी के हम सब कायल हैं ही ...पर समझना नहीं चाहते कि अगर हम सद्भाव के बीज बोयेंगे तो बदले में हमें सद्भावना के फल ही मिलेंगे ... और अगर नफ़रत या दुर्भाव के बीज बोयेंगे तो दुर्भावनाओं के फल आयेंगे ही / बीज बोते वक्त हमें सावधान रहना ही होगा ... यहीं तो भारत का ज्ञान हैं भाई ... यहीं तो गीता का सार है भाई / भगवान बुद्ध की वाणी... " दूसरों का दोष देखना सरल हैं , किन्तु अपना ( दोष ) देखना कठिन / वह ( व्यक्ति ) दूसरों के दोषों को भूसे कि तरह उडाता फिरता हैं , किन्तु अपने दोषों को वैसे ही ढंकता हैं जैसे बेईमान जुआरी पासे को / दुसरे के दोषों को देखने में लगे हुए , सदा शिकायत करने की चेतना वाले ( व्यक्ति ) के आश्रव ( चित्त -मल ) बढ़ते हैं / वह दुक्खों के क्षय से दूर होता है / "
आजकल इंटरनेट और तकनीक के ज़माने में तथ्यों से छेड़ -छाड़ बहुत आसान बात हो गयी हैं / इसी तरह की कोशिशों में अकसर यह देखने में आता हैं की कई प्रकार की जानकारियों को थोडा बहुत फेरबदल कर उनके मायने ही बदल दिए जाते हैं ... और फिर डाल दिया जाता हैं इंटरनेट पर / हमारा युवा जो नयी तकनीक का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता हैं , रेडीमेड जानकारियों के तुरंत संपर्क में आ जाता हैं / अपने सामने आई हर गलत जानकारी को वो बहुत बार बिना सोचे समझे सही मान आगे बढ जाता हैं / परन्तु जाने अनजाने वह अपने अन्दर नफरत के बीज बोता जाता हैं और नफरत का सिलसिला चल पड़ता हैं / अतः हम हर जानकारी पर अपना मत बनाने से पहले थोडा विवेकशील होकर विचार भी करते जाएँ ... तो हमारा अपना नजरिया विकसित होगा , बिन बुलाई नफ़रत की खरपतवार नहीं फैलेगी /
नफ़रत को अपने अन्दर विकसित नहीं होने दे ... नफरत उसका कोई नुकसान नहीं करती जिससे हम नफरत करते है बल्कि हमारे अंतर्मन पर घृणा की इतनी परतों पर परते जमा देती है की उनसे छुटकारा पाना आसान नहीं होता ... और नफ़रत हमारा स्वभाव हो जाता है ... ...और यहीं स्वभाव शारीरिक कर्मों पर हावी होकर हमें क्रोधी और चीड़चिड़ा-सा बना देता हैं ... कई अनेकों बीमारियों का घर हमारा यह शरीर बन जाता हैं सो अलग .. /
नफ़रत को अपने अन्दर विकसित नहीं होने दे ... नफरत उसका कोई नुकसान नहीं करती जिससे हम नफरत करते है बल्कि हमारे अंतर्मन पर घृणा की इतनी परतों पर परते जमा देती है की उनसे छुटकारा पाना आसान नहीं होता ... और नफ़रत हमारा स्वभाव हो जाता है ... ...और यहीं स्वभाव शारीरिक कर्मों पर हावी होकर हमें क्रोधी और चीड़चिड़ा-सा बना देता हैं ... कई अनेकों बीमारियों का घर हमारा यह शरीर बन जाता हैं सो अलग .. /
" हाथी मेरे साथी " फिल्म का यह खूबसूरत गीत ... " नफ़रत की दुनिया को छोड़कर .." रफ़ी साहब की दिलों को छूकर निकलती आवाज में ... बड़ी खूबसूरती से दिलों में प्यार और सद्भाव के बीज बो जाता हैं ! ...कितनी ह्रदयस्पर्शी है ! .... फनकार आनंदबक्षी साहब की बेमिसाल रचना भी हमें यहीं सन्देश दे रही की नफ़रत से बचों ...प्रेम और सद्भाव से मिलकर रहों / चार मिनिट से कम समय में यह गीत बहुत बड़ा सन्देश हमें दे जाता है / नफरत की फसल अफीम की फसल सी हैं ... केवल विनाश के काम आएगी और दवा बनाने के नाम पर उगाई जाएगी / खुश रहों ... फिर मिलेंगे ... मिलते रहेंगे !!!
**********