सुधारने की जिद नहीं .. सुधरने की कोशिश हो !!
अन्ना टीम अब " क " टीम बनकर रह गयी हैं ... केजरी , किरण, किशन, कुमार और उनकी बातें ... कड़ा, कानून, कुतर्क, कुत्सित विचार , क्रोध , कुटिलता इत्यादि ... भाई मैं जड़ों की बात कर रहा था ... और आप सहमत हुए भी तो तने पर आकर ... हमारी संसद तना हैं देश का ... इस तने में पोषक रस आता हैं जड़ों से ...जड़े हैं ... मैं , आप ,और एक- एक भारतीय ... जड़े सुधरें तो धीरे - धीरे तने तक सुधार होगा ही ... तना सुधरेगा तो पेड़ लहलहा उठेगा ही ... इसमें किसी को भी शक नहीं ? अब सोंचे टीम अन्ना को मैं क्यों कोसता हूँ ... इसलिए नहीं की वो लोकतंत्र रूपी पेड़ को सुधारने के लिए क्यों जूझ रही हैं ... बल्कि इसलिए की वह तने पर जहरीले रसायनों का छिडकाव कर रहीं हैं ... छिडकाव करें उससे भी एतराज नहीं ...पर छिडकाव की कोशिशें तने पर करने की कोई भी समझदार आदमी या किसान नहीं करता ... क्योंकि बीमारी जड़ों से आती हैं ... वहां इलाज हो या या फिर कभी कभी फौरीतौर पर पत्तियों पर भी इलाज कोई कोई करता हैं ... तने को किसान नहीं काटता कभी ... वर्ना सारे पेड़ से हाथ धो बैठेगा वह खूब जानता हैं ...
हमारा युवा जो आज गांधीजी को खोजता हैं ... उनकी विचाधारा से प्रभावित हैं ... को अँधेरे में रखकर अपने भड़काऊ , और नकारात्मक विचारों को गांधीजी के नाम पर फैला रहीं हैं टीम अन्ना ... कुमार जी टीम अन्ना के सदस्य का एक कुतर्क आप भी बना सोंचे समझे दोहरा रहे हैं ... " की डाक्टर से शिकायत हैं तो खुद डाक्टर बन जाओ यह कैसा हल हैं " ... कितना बड़ा कुतर्क हैं ... हमें भ्रष्टाचारियों से नहीं भ्रष्टाचार से शिकायत हैं और करनी भी चाहिए ... सभी कहते हैं अपराध से घृणा हो अपराधी से नहीं ... यहीं कारण हैं की हमारी कितनी ही बुरी आदतें हो हमारा परिवार उनके कारण हमें घर से बाहर नहीं न कर देता ... वह लगातार अपने तयी कोशिशें करके हमारी बुरी लतों को छुड़ाना चाहता हैं ... हमसे पीछा छुड़ाने का विकल्प वह नहीं अपनाता ... और कोई अपनाये भी तो उसका कृत्य सराहा नहीं जाता ... अनुशरण के काबिल नहीं समझा जाता ... उसके कृत्य को सभी अपनाये यह नहीं कहा जाता .... न खुले आम उसकी वकालत की जाती हैं ...
अब कल को अगर सारे दल मिलकर केजरी भाई या कुमार भाई या किरण बहन को कहें की आप देश सम्भालों चुनाव भी मत लड़ों ... पर पूर्ण - शुद्धता का प्रमाण पत्र अपने अन्ना से ही ले आओ तो क्या अन्ना का वह प्रमाण पत्र पूर्ण रूप से सही होगा ... गुनाह हर आदमी से होता हैं ... कभी कभी गलत इलजाम भी लग जाते हैं ... गुनाहों की सजा मिले इसका प्रयत्न न्याय प्रणाली तो करती ही हैं ... कर्म और उसके फल का शाश्वत नियम भी ख़ामोशी से निष्पक्ष होकर बिना रुके करता ही रहता हैं ...
थोड़ी या बहुत खामियां हर आदमी में रहती हैं ... फिर भी घर में समाज में और देश में उसे काम करने के अवसर मिलते रहते हैं ... जिसमें ज्यादा खामिया होती हैं ... वह थोड़ी दूर चलकर कभी न्याय प्रणाली के सहारे कभी गीता के नियम के अनुसार मुख्यधारा से हट ही जाता हैं ... फिर वह अपनी विफलता से सीखे तो ठीक नहीं तो दूसरों पर अपनी विफलता का ठीकरा फोड़कर अपनी बुरी आदतों का और अधिक गुलाम होकर विलुप्त भी हो जाता हैं ... पर आकाश में ध्रुव तारे सा वहीँ चमकता हैं जो लगातार अपने सुधार की प्रक्रिया को जारी रखता हैं ... दूसरों का नैतिक बल बड़े यह प्रयास तो हम अपने ही नैतिक बल को बढाकर करें तो सफलता दूर नहीं होती ... गांधीजी कांग्रेस के सपोर्ट या उसके अनुयायिओं की संख्या बल के सहारे न तो तब थे न अब हैं ... उन्हौने अपना नैतिक बल अपने जीवन कल में शनैः शनैः बढाया जो हम देख पाते हैं ... जो हम नहीं देख पाते हैं वह असल बल तो उनका अध्यात्मिक बल था ... जिसे नैतिक बल की बड़ी मजबूत नीव पर खड़ा किया था गांधीजी ने ... सोंचे जरा !!!
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