अपने ऑफिस की तरह ही गांधीजी ने गिरगांव में घर किराए पर लिया, लेकिन ईश्वर ने उन्हें वहां भी स्थिर नहीं होने दिया । घर लिए अभी बहुत दिन नहीं हुए थे कि उनका दूसरा लड़का मणिलाल सख्त बीमारी की चपेट में आ गया । गांधीजी ने डॉक्टर की सलाह ली, डॉक्टर ने कहा- " इसके लिए कोई दवा असर नहीं करेगी, इसे तो अंडे और मुर्गी का शोरबा देने की जरूरत है "।
मणिलाल की उम्र 10 वर्ष की थी गांधीजी ने कहा - मैं उससे क्या पुछु उसका अभिभावक तो मैं ही हूँ , और निर्णय मुझे ही करना हैं। डॉक्टर एक बहुत भले पारसी थे , गांधीजी ने कहा - डॉक्टर हम शाकाहारी हैं, मैं इन 2 चीजों में से एक भी मणिलाल को देना नहीं चाहता। आप दूसरा कोई उपाय बताएं। डॉक्टर बोले - आप के लड़के की जान खतरे में है, दूध और पानी मिलाकर कर दिया जा सकता है किंतु इससे पूरा पोषण नहीं मिल सकेगा। आप जानते हैं, मैं तो हिंदू परिवारों में भी जाता हूं , लेकिन दवा के नाम पर मैं जिस किसी भी वस्तु की सलाह देता हूं वे जरूर सेवन करते हैं। गांधीजी ने कहा आप सच कह रहे हैं आपको यही कहना भी चाहिए। मेरी जिम्मेदारी बहुत बड़ी है। लड़का बड़ा और सयाना होता है तो मैं अवश्य उसकी इच्छा जानने की कोशिश करता और वह जो चाहता सो करने देता, किंतु आज तो मुझे भी इस बालक के लिए सोचना है। मुझे लगता है कि मनुष्य के धर्म की परीक्षा ऐसे समय में ही होती है। मेरे तो सुंदर विचार हैं कि मनुष्य को मांसाहार नहीं खाना चाहिए। जीवन के साधनों की भी हद होती है। कुछ बातें ऐसी होती है जो हमें जीने के लिए भी नहीं करनी चाहिए। ऐसे में मेरे धर्म की मर्यादा मुझे अपने लिए और अपनों के लिए भी मांसाहार का उपयोग करने से रोकती है । इसलिए आप जिस खतरे की बात करते हैं वह खतरा मुझे उठाना ही होगा। डॉक्टर समझदार थे उन्होंने गांधी जी की भावनाओं का सम्मान किया और उनकी इच्छा के मुताबिक मणिलाल को देखना स्वीकार किया।
गांधीजी ने कुने के उपचार जानते थे, वह ये भी जानते थे कि बीमारी में उपवास की बड़ी भूमिका है, उन्होंने मणिलाल को " कुने " की विधि के अनुसार कटी स्नान कराना शुरू किया। लेकिन बुखार उतरता ही न था रात में मणिलाल बुखार की अवस्था में बड़बड़ाने लगता था। पर गांधीजी कहते हैं मैं घबराया नहीं, कहीं बालक को खो बैठा तो दुनिया में मुझे क्या कहेगी, बड़े भाई क्या कहेंगे, दूसरे डॉक्टर को क्यों नहीं बुलाया, किसी वैद्य को क्यों नहीं बुलाया? मां बाप को क्या अधिकार है कि वह अपनी ज्ञान हीनता का प्रयोग बच्चों पर करें ? इस तरह के विचार आते थे और साथ ही ये विचार भी की जो तू अपने लिए करता वही अपने लड़के लिए भी करता हैं , ईश्वर तो इस बात से संतुष्ट ही रहेगा। डॉक्टर प्राण दाता नहीं होता उसके भी अपने प्रयोग चलते रहते हैं जीवन की डोरी तो ईश्वर के हाथ में है, ईश्वर का नाम लें , उस पर श्रद्धा रख , और अपना मार्ग मत छोड़। गांधीजी कहते हैं इस प्रकार मन में उधेड़बुन चल रही थी कि रात हुई मैंने मणिलाल को गीली पर अच्छी तरह निचोड़ी हुई चादर में लपेटने का ( कुने की जल चिकित्सा में सम्पूर्ण शारीर का पैक ) निश्चय किया मैं उठा चादर ली, ठंडे पानी में डुबोया , निचोड़ा और उसे सिर से पैर तक लपेटा। ऊपर से दो कंबल ओढ़ा दिए। सिर पर गीला तौलिया रखा। बुखार से सिर तवे की तरह तप रहा था, पर पसीना आता ही नहीं था।
मैं बहुत थक चुका था मणिलाल को उसकी मां के सुपुर्द कर के मैं आधे घंटे के लिए थोड़ी हवा खाने, ताजा होने , शांति पाने के विचार से चौपाटी पर गया। रात्रि कोई 10:00 बजे होंगे लोगों का आना जाना कम हो चुका था। मैं मन ही मन कह रहा था - हे ईश्वर इस धर्म संकट में तू मेरी लाज रखना, मुंह से राम राम की रटन जारी थी। कुछ देर इधर - उधर टहल कर मैं धड़कती छाती लिए घर लौटा। जब मैं घर पहुंचा तो मणिलाल को पसीना आ रहा था। मैंने ईश्वर का आभार माना। जल के उपचार का जादू देखा। सुबह मणिलाल का बुखार हल्का हुआ दूध और रसदार फल आगे फिर 40 दिन रहा। मैं निर्भर हो चुका था। गांधीजी ने लिखा है कि मेरे सभी लडको में ,मणिलाल सबसे अधिक सुंदर और सुदृढ़ शरीर वाला हुआ। प्राकृतिक चिकित्सा के प्रयोगों के कारण गांधीजी प्राकृतिक चिकित्सकों की पंक्ति में अग्रिम है।
गांधीजी कहते थे भारत जैसे देश के लिए कुदरती उपचार एक वरदान हैं। बाद में भारत में कुदरती उपचार ( प्राकृतिक चिकित्सा ) का उन्होने पहला केंद्र पुणे के पास उरलीकांचन नामक गांव में खोला जो आज भी अपनी सेवाएं दे रहा हैं। पिछली UPA सरकार ने २००९ में प्राकृतिक चिकित्सा को मान्यता देकर उसके ग्रेजुएशन के कोर्स शुरू किये और MBBS के समकक्ष मान्यता दी हैं।